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‘सरकार गांव के द्वार’ कार्यक्रम जनमंच’ की नकल

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भाजपा मीडिया विभाग के प्रदेश संयोजक एवं नयनादेवी के विधायक रणधीर शर्मा ने ‘सरकार गांव के द्वार’ कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस सरकार पर तंज कसते हुए उसे खरी-खोटी सुनाई है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम भाजपा सरकार के समय चलाए गए ‘जनमंच’ की नकल है। कांग्रेस सरकार ने नकल करने का प्रयास तो किया है, लेकिन इसके लिए अकल भी चाहिए। इस कार्यक्रम में कमियों की भरमार है। इसमें व्यस्तता की वजह से अधिकारियों को अपने कार्यालयों से लगातार नदारद रहना पड़ रहा है, जिसकी वजह से अपना उद्देश्य पूरा करने के बजाए प्रदेश सरकार का यह कार्यक्रम लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।
रणधीर शर्मा ने कहा कि भाजपा सरकार के समय लोगों को कई तरह की सुविधाएं उनके घर-द्वार पर उपलब्ध करवाने के लिए ‘जनमंच’ कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। उस समय विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस दिन-रात इस कार्यक्रम की आलोचना करती रही। पानी पी-पीकर ‘जनमंच’ को कोसने वाली कांग्रेस को अब सत्ता में आने पर उसी कार्यक्रम की नकल करने पर मजबूर होना पड़ा है। इससे जहां कांग्रेस की दोहरी मानसिकता उजागर हो रही है, वहीं यह भी साबित हो रहा है कि ‘जनमंच’ कार्यक्रम पूरी तरह से जनहितैषी था। उससे लोगों को भरपूर लाभ मिल रहा था। विभिन्न विभागों से संबंधित कार्यों और समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें कार्यालयों के चक्कर काटने से निजात मिली थी। इससे उनके समय के साथ ही पैसे की बचत भी हो रही थी।
रणधीर शर्मा ने कहा कि एक पुरानी कहावत है कि ‘नकल के लिए भी अकल चाहिए’। कांग्रेस सरकार ने ‘जनमंच’ की नकल तो जरूर की है, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाई है। उल्टे इससे लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं। ‘जनमंच’ महीने में एक बार छुट्टी के दिन आयोजित किया जाता था। कार्य दिवसों पर अधिकारी अपने कार्यालयों में मौजूद रहते थे। इसके विपरीत ‘सरकार गांव के द्वार’ कार्यक्रम लगातार 15 दिन चलाया जा रहा है। इतने दिनों तक अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्यालयों से नदारद रहेंगे। इससे न तो लोगों के काम हो रहे हैं और न ही उनकी समस्याओं का निपटारा हो रहा है। वैसे भी ‘सरकार गांव के द्वार’ कार्यक्रम केवल जनसभा बनकर रह गया है। लोगों की समस्याएं सुनने के बजाए इन कार्यक्रमों में आने वाले मंत्री भाषण देने और लोगों के आवेदन इकट्ठे करवाने तक सीमित हैं। उद्देश्य पूरा न कर पाने की वजह से यह कार्यक्रम लोगों के लिए सुविधा के बजाए परेशानी का सबब बनकर रह गया है।

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