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सरकार व नगर निगम की जनविरोधी नीतियों व लचर व्यवस्था से परेशान जनता – संजय

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शिमला, दिसंबर 17 – भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सरकार व नगर निगम शिमला के द्वारा शिमला शहर में कई महीनों के भारी भरकम पानी व कूड़े के बिल देने की कड़ी निंदा करती है तथा सरकार व नगर निगम शिमला से मांग करती है कि इन अनुचित भारी भरकम बिलो को तुरंत वापिस ले तथा मीटर रीडिंग के आधार पर मासिक पानी व कूड़े के बिल जनता को दे। शहर में जो पानी व कूड़े के बिल अभी कंपनी व नगर निगम ने हजारों व लाखों रुपए के बिल दिये हैं उस पर नाजायज़ पेनेल्टी व सरचार्ज लगाए गये हैं, वह बिलकुल भी सही नहीं है और इसने सरकार व नगर निगम शिमला की लचर कार्यप्रणाली की पोल खोल दी है। आज शहर में कोई भी वर्ग ऐसे नहीं है जो सरकार व नगर निगम की इन जनविरोधी नीतियों व लचर व्यवस्था से परेशान नहीं है। यह अत्यंत चिंतनीय इसलिए भी है जबकि शहर की जनता द्वारा चुने विधायक ही सरकार में शहरी विकास मंत्री हैं और उनके विभाग के तहत ही यह सब किया जा रहा है। कोविड महामारी के चलते जहां सरकार को राहत प्रदान करनी चाहिए थी वहां सरकार व नगर निगम राहत देने के बजाए जनता पर इस प्रकार के भारी भरकम अनुचित पानी व कूड़े के बिल जारी कर उन पर आर्थिक बोझ डालने का कार्य कर रही है।

जबसे शिमला नगर निगम व प्रदेश में बीजेपी सत्तासीन हुई है तबसे जनता पर पानी, बिजली, प्रॉपर्टी टैक्स, कूड़ा उठाने की फीस आदि की दरों में निरन्तर बढ़ोतरी कर जनता पर आर्थिक बोझ डालने का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2016 में पूर्व नगर निगम ने लम्बे संघर्ष के बाद शिमला की पेयजल व्यवस्था पूर्णरूप से अपने अधीन ली थी तथा नगर निगम के प्रबंधन में ग्रेटर शिमला वाटर सप्लाई एंड सिवरेज सर्कल(GSWSSC) का गठन कर पेयजल सुधारने के लिए करीब 80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था और जून, 2017 से मासिक पानी के बिल जारी करने की पूर्ण व्यवस्था कर दी थी। परन्तु जून, 2017 में नगर निगम शिमला में बीजेपी सत्तासीन होने के बाद सरकार व विश्व बैंक के दबाव में आकर नगर निगम की इस पूरी व्यवस्था को तहसनहस कर दिया और एक कंपनी शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड(SJPNL) का गठन कर पेयजल व्यवस्था के निजीकरण का कार्य आरम्भ कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप न तो 3 वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद जनता को मासिक पानी के बिल मिले और उसके बदले आज अनुचित भारी भरकम पानी के बिल दिये जा रहे हैं और अब लोकतांत्रिक रूप से जनता के द्वारा चुनी हुई नगर निगम का भी इस कंपनी के ऊपर कोई नियंत्रण नहीं है। जिसके कारण आज जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है और उन्हें सरकार व नगर निगम के इस जनविरोधी निर्णय के कारण भारी परेशानी उठानी पड़ रही है।
सीपीएम सरकार से मांग करती है कि संविधान की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए नगर निगम एक वैधानिक संस्था होने के कारण उसको अपने दायित्वों का निर्वहन स्वतंत्र रूप से करने दिया जाए और इस कंपनी(SJPNL) को समाप्त कर पूर्व की भांति पूरी पेयजल की व्यवस्था नगर निगम के अधीन की जाए। ताकि शहर के द्वारा चुनी हुई सरकार अपने दायित्व का निर्वहन कर सके और जनता के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करे। यदि सरकार इन अनुचित पानी व कूड़े के बिलों को वापिस नहीं लेती और इस कंपनी को समाप्त नहीं करती तो पार्टी सरकार व नगर निगम की इन जनविरोधी नीतियों व लचर कार्यप्रणाली के विरुद्ध जनता को लामबंद कर आंदोलन तब तक चलाएगी जबतक कि यह मांगे पूरी नहीं हो जाती और जनता को राहत नहीं मिल जाती।

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