दशकों पहले जैसा मनाया जायेगा दशहरा उत्सव
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ढालपुर मैदान में 1660 से चल रहे अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव का स्वरूप इस बार बदल जाएगा। करीब 7 दशक से भी अधिक समय पूर्व जैसे दशहरा उत्सव होता था, इस बार भी वैसा ही होगा। दशकों पहले बाहर से भी व्यापारी आते होंगे लेकिन इस बार वे भी नहीं आएंगे। 332 देवी-देवताओं को भेजे गए निमंत्रणों के बीच जो भी देवी-देवता रघुनाथ जी के दरबार में हाजिरी भरने आएंगे उन्हें उनके चिन्हित स्थानों पर बैठाया जाएगा। इसके अलावा दशहरा उत्सव में व्यापारिक गतिविधियों पर पाबंदी के बीच सिर्फ खाने-पीने की दुकानें ही सजेंगी। खाने-पीने के सामान की दुकानों को अनुमति इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देवलू भोजन चाय आदि को न तरसें।
दशकों पहले भी दशहरा उत्सव ऐसा ही होता था। उत्सव में मिठाइयों की दुकानें ही सजती थीं। देवमयी फिजा के बीच लोग मिठाइयां खाते, खिलाते व बांटते थे और घरों को भी मिठाइयां लेकर लौटते थे। देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में माथा टेकना ही लोगों का मुख्य लक्ष्य होता था और उत्सव में सभी देवी-देवताओं के दर्शन भी एक ही स्थान पर होते थे। इस बार भी उत्सव में ऐसा ही होगा और देव समागम तथा कुछ खाने-पीने की दुकानें ही मिलेंगी। खाने-पीने की दुकानों को लगाने की अनुमति भी उन्हें ही मिलेगी, जिन्हें कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन की दोनों डोज लगी होंगी। अन्य कोविड नियमों की भी सख्ती से अनुपालना करनी होगी। इस प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लू दशहरा उत्सव का स्वरूप 7 दशक से भी अधिक पुराने उत्सव जैसा ही होगा। कोरोना महामारी के कारण उपजे ऐसे हालातों को लोग देव इच्छा ही मान रहे हैं। अब देव आदेश के अनुसार ही उत्सव में देवलू हिस्सा लेंगे।