ऑर्गेनिक पपीता उत्पादन कर स्वरोजगार की पकड़ी राह, बने युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत
1 min readनाहन 07 नवम्बर – सपना था बडा होकर इंजीनियर बनुंगा लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ नहीं थी। माता-पिता के पांच बच्चे थे, चार बेटियंा तथा एक बेटा स्वयं मैं। पिताजी खेती-बाड़ी के साथ-साथ पंडताई का कार्य करते हैं। घर में कोई निश्चित मासिक आय के साधन भी नहीं थे। इन सबके बावजूद पिताजी ने हम सभी भाई बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाई। यह कहना है हितेश दत शर्मा पुत्र लक्ष्मी दत्त शर्मा जोकि गांव फांदी बोरीवाला डाकघर कोलर तहसील पांवटा साहिब जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश के निवासी हैं।
हितेश बताते हैं कि उन्होंने बीटेक मैकेनिकल वर्ष 2015 में की, जिसके बाद 3 साल तक निजी क्षेत्र में नौकरी की जहां उन्हे 15,000 प्रति माह वेतन मिल रहा था जिससे वह संतुष्ठ नहीं थे। हितेश शुरू से ही किसी का नौकर न बनकर स्वयं मालिक बनकर अन्यों को रोजगार के साधन उपलब्ध करवाना चाहते थे। मार्च 2020 में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया तभी हितेश की नौकरी भी छूट गई, जिसके बाद उन्होंने रोजगार के लिए यूट्यूब पर सर्च किया जहां उन्हें पपीते का बगीचा लगाने की प्रेरणा मिली। इसके लिए उन्होंने कृषि तथा बागवानी विभाग की अधिकारियों से संपर्क कर जानकारी हासिल की। इस पर उन्होंने ऑर्गेनिक खेती करने की मन में ठानी ताकि लोगों को जहर मुक्त तथा औषधीय गुणों से युक्त प्राकृतिक तौर पर तैयार किए गए पपीते उपलब्ध करवा सकें।
उन्होंने सितम्बर 2020 में इंडिया मार्ट से एक पैकेट 10 ग्राम रेड लेडी ताइवान नामक पपीते की प्रजाति का बीज 3000 रुपए देकर ऑनलाइन मंगवा कर उसके पौधे तैयार किए तथा अपनी लगभग दो बीघा भूमि पर 400 पौधे रोपित किए। एक वर्ष में ही हितेश के बगीचे में पपीते के पौधे फलदायक को गए, जिनमें अभी 40 से 50 किलोग्राम फल प्रति पौधा लगा है। सितंबर माह में ही उन्होंने एक क्विंटल पपीता को 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा। हितेश बताते हैं कि उन्होंने ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म पर भी अपने उत्पादों को रजिस्टर किया है जिसके माध्यम से ग्राहक ऑनलाइन डिमांड करते हैं। इसके अतिरिक्त, वह नाहन व पांवटा की स्थानीय मार्किट में भी पपीता पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि वह अपने बगीचे में शुन्य लागत प्राकृतिक खेती के तहत कार्य कर रहे हैं, जिसमें किसी भी प्रकार कि रासायनिक खाद अथवा दवाई का स्प्रे नहीं किया जाता है। वह आपने पौधों की जड़ों में गोबर की खाद, सूखा घास, पराली डालते हैं ताकि जमीन में नमी बनी रहे तथा पौधों के मित्र जीव भी जीवित रह सकें। पौधों में बीमारियों से बचाने के लिए वह घनामृत, जीवामृत, तथा खट्टी लस्सी का प्रयोग करते हैं। इस पपीते के बगीचे में मल्टी क्रॉपिंग के तहत उन्होंने मूली, स्ट्रॉबरी, गोभी तथा मटर की फसल शून्य लागत प्राकृतिक खेती के अंतर्गत की है।
हितेश बताते हैं कि पपीते के पौधे की आयु 4 से 5 वर्ष की होती है तथा यह पौधा 2 वर्ष तक अच्छी पैदावार दे सकता है। पपीते का पौधा 15 से 40 डिग्री तक तापमान तथा समुंदर तल से 800 मीटर तक अच्छा फलता फूलता है। वह बताते हैं कि इस सीजन के दिसंबर माह तक 8 से 10 टन तथा अगले वर्ष मार्च माह तक भी 8 से 10 टन पपीते के फल का उत्पादन उनके बगीचे में हो सकता है।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सोलर फेंसिंग के लिए 3 लाख जबकि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत टपक सिंचाई के लिए 50000 रुपए स्वीकृत हुए, जिस पर उन्हे प्रदेश सरकार की ओर से 80 प्रतिशत अनुदान भी मिला।
हितेश बताते हैं कि पपीता जहां खाने के लिए स्वादिष्ट होता है, वही इसके अनेकों औषधीय गुण भी विद्यमान हैं। पपीते का सेवन शुगर, कैंसर तथा डेंगू बुखार में भी लाभदायक है। इसके अतिरिक्त, पपीते के पत्ते शरीर में प्लेटलेट की संख्या को बढ़ाने में भी रामबाण हैं।
हितेश का कहना है कि शिक्षित युवाओं को रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में न जाकर, हिमाचल में ही स्वरोजगार के साधन तलाशने चाहिए। इसके लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना, बागवानी तथा कृषि विभाग से संबंधित अनेक कल्याणकारी योजनाएं चला रखी है जिसका लाभ बेरोजगार उठाकर अपनी आर्थिकी को सुदृढ कर स्वाभिमान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।