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वनों पर निर्भरता कम करके ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाएगी ‘सिक्योर हिमालय परियोजना’- उपायुक्त

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केलांग, 21 जुलाई– जैव विविधता के संरक्षण, आजीविका में विविधता लाने, वन्यजीव अपराध को रोकने और वनों के प्रति ज्ञान को विस्तार देने पर आधारित लक्ष्यों को लेकर तैयार सिक्योर हिमालय परियोजना के जरिए जनजातीय लाहौल वन मंडल में ग्रामीणों की वनों पर निर्भरता को कम करके वनों के संरक्षण के साथ लोगों की आर्थिकी को सुदृढ़ किए जाने की कवायद शुरू की जा चुकी है। सिक्योर हिमालय परियोजना के इस चरण में लाहौल घाटी के मयाड़, तिन्दी और उदयपुर क्षेत्रों को चयनित किया गया है।
‘उपायुक्त लाहौल- स्पीति नीरज कुमार ने बताया कि प्रदेश के वन विभाग द्वारा इस परियोजना का कार्यान्वयन हाई रेंज हिमालयन इको सिस्टम के संपोषणीय उपयोग एवं पुनः स्थापन के अलावा स्थानीय स्तर पर लोगों की आजीविका को सुरक्षित रखते हुए वन संरक्षण को सुनिश्चित करने के मकसद से किया जा रहा है।’
इस परियोजना को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय,  यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) और ग्लोबल एनवायरमेंट फैसिलिटी (जीईएफ) के सहयोग से पूरा किया जाएगा। इससे जहां एक ओर चयनित क्षेत्रों के इकोसिस्टम को संरक्षित किया जा सकेगा, वहीं स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों की आर्थिकी भी सुदृढ़ होगी। इस परियोजना की कार्य योजना 16 विभिन्न स्टडीज पर आधारित है। जिनमें वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया अध्ययन भी शामिल है।
टिन्गरिट क्षेत्र में सीबकथोर्न ( छरमा) उत्पादों में वैल्यू एडिशन के लिए स्थापित होने वाले संयंत्र को भी इस परियोजना में शामिल किया गया है। स्थानीय लाभार्थियों का समूह गठित करके ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत पंजीकरण करवा कर इस समूह का उद्योग विभाग द्वारा संचालित केंद्र सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ योजना के तहत भी कन्वर्जंस किया जाएगा ताकि इस उद्यम के लिए समुचित वित्तीय सहायता और तकनीकी ज्ञान उपलब्ध किया जा सके।
उपायुक्त ने बताया कि ग्रामीणों की वनों पर विशेष तौर से इंधन की लकड़ी पर निर्भरता कम करने के लिए परियोजना के तहत खंजर क्षेत्र में 6 सोलर वाटर हीटर भी स्थापित किए जा चुके हैं ताकि ग्रामीणों को पानी गर्म करने के लिए लकड़ी की आवश्यकता ना रहे। इस कार्य को इनोवेटिव वाटर सोल्युशन कम्पोनेंट के तहत किया जा रहा है।
सामुदायिक जागरूकता और सहभागिता के लिए कार्यशालाओं  का आयोजन भी इस परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है। पारंपरिक हथकरघा उत्पादों को लेकर स्थानीय महिलाओं के लिए इस वर्ष भी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी कांगड़ा के तकनीकी सहयोग से महिलाओं के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा ताकि नई तकनीक और सोच के समावेश से इन उत्पादों को मार्केट की मांग के अनुसार तैयार किया जा सके। इसके अलावा वन विभाग के कर्मियों के लिए भी फॉरेस्ट ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट सुंदर नगर में वाइल्डलइफ क्राइम कंट्रोल के अलावा सस्टेनेबल फॉरेस्ट मैनेजमेंट पर प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
‘हिम तेंदुए का संरक्षण परियोजना का अहम हिस्सा है और इसके तहत स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग टूल पर आधारित प्रशिक्षण भी दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि थिरोट के समीप जैव विविधता हेरिटेज साइट विकसित की जाएगी जिसे राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा चयनित किया जा रहा है।’
इसके अलावा लाहौल के कुछ पारंपरिक उत्पादों को भौगोलिक संकेतक यानि जीआई टैग प्रदान करने की दिशा में भी कदम उठाए जाएंगे।
उपायुक्त ने कहा कि यह परियोजना हाई रेंज हिमालयन इको सिस्टम की चरागाहों और वनों के संपोषणीय प्रबंधन को बढ़ावा देने में कारगर साबित होगी।
वन मंडल अधिकारी लाहौल दिनेश शर्मा बताते हैं कि इस परियोजना के तहत विभिन्न विभागों के सहयोग से भी प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा ताकि परियोजना के समग्र लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्थानीय लोगों का सतत और प्रभावी सहयोग सुनिश्चित हो सके।

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