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आवाज धीमी सुनाई दे या कुछ विशेष तरह के शब्दों को समझने में कठिनाई हो तो तुरंत अस्पताल जाएं

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बिलासपुर 25 जून-मुख्य चिकित्सा अधिकारी बिलासपुर, डाॅ0 प्रकाश दरोच ने बताया कि बहरापन अपने आप में एक बडी स्वास्थ्य समस्या है, जो लोग बहरेपन का शिकार हुए हैं उन्हें देखकर ही पता चलता है कि जीवन कितना अधूरा है। उन्होंने बताया कि बहरेपन के कारणों, लक्षणों, इलाज के तरीकों और बचाव के साधनों बारे ठीक और सटीक जानकारी होना अनिवार्य है, ताकि मर्ज फैलने से पहले ही उसे रोका जा सके।
उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति बोलता है तो वह ध्वनि तरंगों के द्वारा हवा में एक कंपन पैदा करता है। यह कंपन कान के पर्दे एवं सुनने से संबधित तीन हडिडयों मेलियस, इन्कस व स्टेपीज के माध्यम से आंतरिक कान में पहुंचता है और सुनने की नस द्वारा आंतरिक कान से संप्रेषित होता है। इस कारण तरंगों में अवरोध पैदा हो जाए, तो वह बहरापन कहलाता है। उन्होंने बताया कि यदि अधिक जोर से बोलने पर भी अगर किसी को सुनने के लिए संघर्ष करना पडे, तो उसे सुनने की समस्या हो सकती है। यह बहुत हल्के से शुरु होती है, लेकिन धीरे-धीरे बहरेपन जैसी गंभीर समस्या में बदल जाती है।
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में 46 करोड 60 लाख लोग बहरेपन से ग्रस्त है, जिसमें तीन करोड 40 लाख बच्चे है। भारत में 6 करोड 30 लाख आबादी पर 298 लोगों को बहरेपन की समस्या से जुझना पड रहा है, जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अधिक प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि इन आकडों को सुधारा नहीं गया तो आगे स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बहरापन रोकथाम कार्यक्रम का उदेश्य बहरेपर के निदान और उपचार में जनता की भागीदारी को बढावा देना है। बहरापन अनुवांशिकता, जन्म के समय जटलताओं, इंफेक्शन, दवा का इस्तेमाल, चोट लगना, ज्यादा शोर या अधिक उम्र आदि कारणों से हो सकता है। वहरापन स्थाई व अस्थाई दोनों तरह का हो सकता है। उन्होंने बताया कि स्थाई रुप से बहरेपन में अंदरुनी कान की नाजुक रोम कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिनकी जगह फिर दूसरी कोशिकाएं नहीं ले सकती। ऐसी स्थिति आने से पहले ही हमें अलर्ट होने की जरुरत है।
उन्होंने बताया कि मोटरसाइकिल चलाना, मिक्सर, वैक्यूम क्लीनर, पावर ड्रिल्स, अत्यधिक मोबाइल का इस्तेमाल, लाउडस्पीकर, कर्कश संगीत, रेडियो-टीवी की तेज आवाज, पटाखे फोडना, बसों-मोटरों के प्रैशर हाॅर्न का शोर हमें बहरेपन की तरफ धकेलता है। इन तमाम वस्तुओं से 74 से 116 डेसिबल रेंज की ध्वनि उत्पन्न होती है, जबकि सुरक्षित ध्वनि सीमा 80 डेसिबल है। अगर काम या मनोरंजन में लंबे समय तक हम शोर या तेज ध्वनि के संपर्क में रहते हैं, तो श्रवण रोग हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि कान से निकलने वाली मवाद या कान में जमा होने वाली मैल (वैक्स) बाहर निकालने के बजाए अंदर धकेली जाएं, तब भी अस्थाई क्षति के हम शिकार बन जाते हैं। कान में छेद, पिन या नुकीली वस्तु का कान में डालना, जोर से थप्पड मारना, पटाखों का फोडना और कान में गंदा पानी जाना भी कान के पर्दे को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
उन्होंने बताया कि जहां ज्यादा शोर की संभावना हो वहां ईयर प्लग या ईयर मफस का इस्तेमाल करना जरुरी है। कानों को तेज शोर से बचाए और गंदा पानी ना जाने दे। बचपन की बीमारियां जैसे खसरा, कनफैडे, मस्तिक ज्वर (मेनिनजाइटिस), दुर्घटना आदि भी बहरेपन को न्याता देती है। उन्होंने बताया कि कान में रिसाव, कम सुनाई देने, चोट लगने पर तुरंत नजदीकी डाॅक्टर से संपर्क करें। कान में किसी प्रकार का तरल पदार्थ या तेल ना डालें। यदि कोई बच्चा कक्षा में अनमना रहता है या पढाई में ध्यान नहीं देता तो हो सकता है, उसे कम सुनाई दे। बिना डाक्टरी सलाह गर्थावस्था में दवाई ना लें। कान से खून या बदबू आना गंभीर रोग के लक्षण हैं। अतः सतर्क रहें। यदि व्यक्ति को आवाज धीमी सुनाई दे या कुछ विशेष तरह के शब्दों को समझने में कठिनाई हो तो तुरंत अस्पताल जाएं। अस्पताल में शारीरिक जांच, सामान्य स्क्रीनिंग, मैल हटाकर या आॅडियोमीटर परीक्षण द्वारा पता करके तुरंत इलाज हो सकता है। इससे भविष्य में होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। जगर अचानक सुनाई देना बंद हो जाए, तो भी तुरंत अस्पताल में जाने की जरुरत है, क्योंकि आॅपरेशन या हियरिंग एंडस (श्रवण यंत्र) से जीवन को सुगम बनासा जा सकता है।

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