मानव-अधिकारों के संरक्षण के बिना कल्याणकारी राज्य की नींव खोखली- डॉ. सीमा सिंह
1 min readएपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कानून के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर ने वेबिनार में पढ़ाया राज्य और मानव अधिकारों पर पाठ
शिमला, जून 9 – स्थानीय एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च की ओर से विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. लोकेश चंदेल के तत्वावधान में बुधवार को राज्य और मौलिक अधिकार विषय पर एक दिवसीय लेक्चर सीरीज के तहत वेबिनार आयोजित किया गया। डिपार्टमेंट ऑफ लीगल स्टडीज की ओर से अस्सिस्टेंट प्रो. ऋतु पाँटा ने कार्यक्रम का समन्वय किया गया। इस वेबिनार में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेन्टर की ओर से अस्सिस्टेंट प्रो. डॉ. सीमा सिंह ने बतौर विषय विशेषज्ञ व मुख्य अतिथि वक़्ता शिरकत की।
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने डॉ. सीमा सिंह का कार्यक्रम में शामिल होने के लिए धन्यवाद करते हुए कहा कि डॉ. सीमा सिंह एक होनहार लॉ विदुषी, लेखक और लॉ प्रोफेसर हैं, उनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से केवल लॉ पढ़ने वाले, कानून के जानकारों सहित आम आदमी को बदलती राज्य की अवधारणा, मानव मौलिक अधिकार और कल्याणकारी राज्य व कानून के विभिन्न पहलुओं पर डाला गया विस्तार से प्रकाश राज्य सत्ता और कानून सत्ता और मानव अधिकारों के संरक्षण में जागरूक व ज्ञानशक्ति को बढ़ाएगा ताकि सही मायनों में मानव हित में देश का कानून, संविधान, प्रसाशन और विभिन्न संस्थानों द्वारा कानून के दायरे में रहकर और बिना मानव अधिकारों के उल्लंघन किए कल्याणकारी राज्य की ओर अग्रसर हों। कार्यक्रम में डॉ. सीमा सिंह ने बड़े विस्तारपूर्वक राज्य और मौलिक अधिकारों पर अपने व्याख्यान में चर्चा करते हुए वेबिनार में उपस्थित लॉ के छात्रों, शिक्षको और लॉ में रुचि रखने वाले लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकारों पर काफ़ी पढ़ा जाता है और व्यवहार में भी मौलिक अधिकारों की बात करते हैं लेकिन मौलिक अधिकार संविधान से नहीं मिलते बल्कि ये तो मानव के नेचुरल अधिकार हैं जिन्हें राज्य द्वारा संरक्षण प्रदान करना होता है।
डॉ. सीमा ने कहा कि जब हम राज्य शब्द पर आते हैं तो आम आदमी के लिए राज्य कोई देश और उसका कानून हो सकता है, लेकिन राज्य की अवधारणा व थ्योरी विभिन्न विचारकों और मतावलंबियों ने समय-समय पर परिभाषित किया है जिसे समय के अनुरूप मानव हित में बदलना भी पड़ा और कई बार राज्य-हित में बदलना पड़ा परंतु यह बदलाव मानव अधिकारों और राज्य की संपत्ति के संरक्षण में होता है क्योंकि मानव अधिकारों के बिना राज्य और उस राज्य की सत्ता व कानून कोरा कानून है जब तक वह मानव अधिकारों के संरक्षण की गारंटी प्रदान नहीं करता। सीमा ने राज्य की अवधारणा व विभिन्न थियुरिओं पर चर्चा करते हुए व उदाहरण देते हुए छात्रों को समझाया कि राज्य कौन हैं और कौन राज्य नहीं, किस के पास जनता से जुड़े कानूनों पर विचार करना, कानून द्वारा निर्धारित करना और प्रयोग करना है। डॉ. सीमा ने जोर देकर कहा कि भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अध्ययन से राज्य की अवधारणा, मानव अधिकारों का संरक्षण, कानूनों, न्यायालयों द्वारा निर्धारित निर्णय, विधानपालिका और जनता-हित से जुड़े संस्थानों से प्रकट होती है जो मानव अधिकारों के संरक्षणवादी हित में कार्य करने से है, उन्होंने कहा कि जहाँ कहीं अधिकारों का उल्लंघन हो तो वहाँ उपचार भी राज्य और राज्य के कानून द्वारा निर्धारित है जिसके लिए निर्मित संविधान द्वारा न्याय पाने के लिए रास्ता दिखाया गया और क्षेत्राधिकार निर्धारित किए हैं और कई बार मानवीय मूल्यों को न्याय प्रदान करने हेतु संशोधन भी करने पड़ते हैं परंतु संविधान के आधारभूत ढांचे को नहीं बदला जा सकता है।
इस संबंध में डॉ. सीमा सिंह ने छात्रों को विभिन्न मामलों में दायर सूचना का अधिकार एक्ट (आर.टी.आई) और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के हवाला देते हुए बड़ी आसानी से राज्य के गहन अर्थ, इसकी शक्ति, कानून, संविधान, सताधारक और उन द्वारा कल्याणकारी राज्य के निर्माण के लिए मानव अधिकारों को सुरक्षित रखना समझाया। डॉ. सीमा ने कहा कि जैसे-जैसे हम कल्यणकारी राज्य की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे राज्य की भूमिका मानव मूल्यों को जीवंत रखने में भी बढ़ रही है क्योंकि हम परिवर्तन के दौर में जी रहे हैं और राज्य का हस्तक्षेप भी कम हो रहा है जो कि कल्याणकारी राज्य और मानव कल्याण, न्याय, समानता, मानव विकास और स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि राज्य एक रेगुलेटर तरह काम करता है और उस द्वारा दी गई कानून शक्ति मानव हित, न्याय, मानव अधिकारों की रक्षा, समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक-आर्थिक न्याय को प्रसस्त करता है और उस द्वारा बनाई गई विधि, नियम आदि द्वारा न्याय करता है।
डॉ. सीमा ने जोर देकर कहा कि जब भी अधिकारों की बात करते हैं तो इनके साथ जिम्मेदारी व कर्तव्यों की भी बात होना लाज़मी है क्योंकि कर्तव्यों के बिना अधिकार अधूरे हैं और हम एक दूसरे के अधिकारों का आदर भी नहीं कर सकते न कल्याणकारी राज्य की ओर बढ़ सकते हैं। कार्यक्रम के अंत में प्रश्न-उत्तर का सत्र चला जिसमें विधि सहित दूसरे संकायों के छात्रों ने ढेरों कानून संबंधित, आर.टी.आई. संबंधित और वर्तमान समय में विवादों में रहे मुद्दों से संबंधित प्रश्न डॉ. सीमा से पूछे और डॉ. सीमा ने बड़ी आसानी से छात्रों के प्रश्नों के उत्तर देकर उनकी शंकाओं को दूर किया और कानून-ज्ञानवर्धन किया। वेबिनार के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. लोकेश चंदेल ने डॉ. सीमा सिंह, छात्रों, शिक्षकों सहित एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान, रजिस्ट्रार डॉ. अनिल कुमार पाल, डीन एकेडेमिक्स प्रो.डॉ. कुलदीप कुमार, विभागाध्यक्ष डॉ. कमल कश्यप, विभागाध्यक्ष डॉ. नील सिंह, विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील ठाकुर, कल्पना वर्मा, चेतन मेहता, डॉ. अरुण चौधरी, डॉ. भरतेश, विश्वविद्यालय की टेक्निकल टीम-सदस्य, मीडिया-टीम और प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि एपीजी शिमला विश्वविद्यालय की ओर से छात्र-ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों व वेबिनरों में लेक्चर-सीरीज आयोजित करवाने में हमेशा साथ मिलता रहेगा ताकि छात्रों को सही तालीम की सीख मिलती रहे।