Himachal Tonite

Go Beyond News

जैव विविधता संरक्षण कार्यशाला

1 min read

शिमला, 12 जनवरी-  हिमाचल राज्य विविधता बोर्ड और प्रेस क्लब शिमला के संयुक्त तत्वाधान में जैव विविधता संरक्षण पर मंगलवार को प्रेस क्लब में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की अध्यक्षता निशांत ठाकुर, सयुंक्त सदस्य सचिव, राज्य जैव विविधता बोर्ड ने की।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश, जैव विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन में देश में अग्रणी प्रदेशों में से एक हैं। राज्य जैव विविधता बोर्ड ने जैव विविधता अधिनियम 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत 3371 जैव विविधता प्रबंधन समितियां तथा इतने ही लोक जैव विविधता रजिस्टर तेयार किये हैं। जैव विविधता बोर्ड प्रदेश में चार जैव विविधता विरासत स्थलों की अधिसूचना पे कार्य कर रहा है। लोक जैव विविधता रजिस्टर से संबंधित जानकारी अपलोड करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म को जैव विविधता बोर्ड की वेबसाइट पर होस्ट किया है तथा 3371 जैव विविधता प्रबंधन समितियों को यूनिक आईडी और पासवर्ड प्रदान किए गए हैं l

इस अवसर पर शुभ्रा बनर्जी, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, राज्य जैव विविधता बोर्ड ने जैव संसाधनों के सरंक्षण तथा सतत उपयोग पर विस्तार से प्रकाश डाला तथा संरक्षण के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि जैव विविधता अधिनियम 2002 के हित लाभ प्रावधानों के अनुसार उपयोगकर्ता उद्योग के सहूलियत के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड ने एक ऑनलाइन आवेदन पत्र अपने वेबपोर्टल होस्ट किया है।

डा० मुरारी ठाकुर, परियोजना समन्वयक, राज्य जैव विविधता बोर्ड ने अपने व्याख्यान में जैव विविधता अधिनियम 2002 के कुछ प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश जैव विविधता का भण्डार है तथा यहाँ के कुछ हिस्सों में स्थानीय लोग, अपनी आजीविका के लिए जैव संसाधनों खासकर जड़ी बूटियों पर निर्भर हैं। प्रदेश के कुछ भागों में इन दुर्लभ जड़ी बूटियों की खेती भी की जाने लगी है।

उन्होंने बताया कि एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार आने वाले समय में प्रदेश को जैव विविधता अधिनियम 2002 के प्रावधानों के माध्यम से लगभग 36 करोड़ सालाना आय होगी। उन्होंने बयाता कि इसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत यह राशि उन ग्राम पंचायतों में भेजी जानी हैं जहाँ से उन जैव संसाधनों/जड़ी बूटियों का व्यापार हुआ होगा तथा यह राशी जैव संसाधनों/जड़ी बूटियों के संरक्षण में व्यय की जायेगी।

इसके अतिरिक्त, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ अर्जित करने के लिए जैव संसाधनों के क्षेत्र में इनकी विपणन प्रणाली को मजबूत करके, मूल्यवर्धन के माध्यम से, उत्पादकों को उपयोगकर्ताओं से सीधे जोड़ने इत्यादि से प्रदेश में आजीविका के नए अवसरों में वृद्धि बहुत संभव है।
डा० पंकज शर्मा, वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेशनल, राज्य जैव विविधता बोर्ड ने हिमाचल प्रदेश में पायी जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियों, जो कि संकटग्रष्ट हैं, के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने जैव विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन मैं आम जन मानस की भागीदारी पर भी प्रकाश डाला।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *