मैलन कोटगढ़ में, देवता चतुर्मुख के प्रांगण में दो दिवसीय पारंम्परिक बूढी दिवाली
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बौलो दैवडिये, बोल दैवडे दैवड़ईऐ
आरौ बिकौ ,पारौ बीकौ देवा कायी सूनियौ टीकौ
बोल दैवडे दैवड़ईऐ|
ग्राम पंचायत मैलन,कोटगढ़ की प्रधान आदरणीय कमला ठाकुर ने बताया कि देवता चतुर्मुख मैलन के प्रांगण में दो दिवसीय पारंम्परिक बूढी दिवा ली का यह त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है जिसमे 3 दिसंबर को स्टार नाइट में चवासी बॅयज की पहाडी नाटियो की धूम रहेगी साथ ही हिमाचल प्रदेश की सुप्रसिद्ध लोक गायिका व स्वर कोकिला रोशनी शर्मा अपनी प्रस्तुति देगी |
कार्तिक अमावस के दिन भगवान राम वनवास काट कर अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या वासियों नें राम, सीता और लक्ष्मण का भव्य स्वागत किया। रात को पूरी नगरी में दीये जलाये गये। लेकिन संचार के साधन न होने के कारण तब भारतवर्ष के इन उत्तर पश्चिमी पहाड़ों तक इस समाचार को पहुंचने में एक चान्द्र मास लग गया। जिस दिन यह सुखद समाचार यहाँ तक पहुंचा उस दिन मार्गशीष अमावस थी। इन पहाड़ों में लोगों नें मशालें जलाकर उस रात रोशनी की और उसी दिन को दीवाली मान लिया। अयोध्या में जिस दिन रामचंद्र आये उस दिन दीवाली हुई और इन पहाड़ों में जिस दिन उन के आने की खबर मिली उस दिन दीवाली हुई। जिस समाचार की त्वरित पहुंचने की अपेक्षा रही होगी वह जैसे यहां तक का रास्ता तय करते-करते बुढ़ा गया। कदाचित् इसीलिए इसे पहाड़ी में ‘बुड्डी दैवड़ि’ अर्थात बूढ़ी दीवाली कहा जाने लगा। परम्परा अनुसार इन पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी, मार्गशीष अमावस को बूढ़ी दिवाली मनाये जाने का प्रचलन है। पहाड़ों में त्योहार देवी देवताओं की छत्र छाया में मनाये जाते हैं। कालांतर में स्थानीय देवताओं को भी इस प्रकाश महोत्सव में शरीक कर लिया गया।
मैलन कोटगढ़ में, देवता चतुर्मुख के प्रांगण में, इस रात बड़ी धूम धाम से प्रकाश का यह त्यौहार मनाया जाता है। कई अन्य स्थानों की तरह खड़ाहण में भी, देवता जिशर के मन्दिर में इस प्रकाश उत्सव का आयोजन होता है। मशालें उठा कर उदघोष करते हैं, “दैवड़ि आ हो दैवड़ि आ।”
उमा नधैक