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मानवाधिकार कोर्ट में भी दस्तक दे सकते हैं पीड़ित: प्रो. ललित डढवाल

शिमला। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के विधि विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर ललित डढवाल कहा है प्रदेश में मानवाधिकार उल्लंघन होने पर पीड़ित हर ज़िले में गठित मानवाधिकार कोर्ट में दस्तक दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार एक भारतीय अवधारणा है, पश्चिम ने इसे बहुत बाद में अपनाया।

विश्व मानवाधिकार दिवस पर उमंग फाउंडेशन और डिसेबल्ड स्टूडेंट्स एंड यूथ एसोसिएशन (डीएसवाईए) द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में प्रोफेसर ललित डढवाल और विश्वविद्यालय के विकलांगता मामलों के नोडल अधिकारी प्रो. अजय श्रीवास्तव ने मानवाधिकारों के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के दृष्टिबाधित एवं अन्य विकलांग विद्यार्थियों तथा युवाओं ने हिस्सा लिया।

प्रोफ़ेसर डढवाल ने कहा कि मानवाधिकार किसी देश, सरकार, राजा, या संविधान द्वारा नहीं दिए जाते। बल्कि यह ऐसे अधिकार हैं जो मानव मात्र को नैसर्गिक रूप से प्राप्त होते हैं। सरकार या कोई अन्य इनका उल्लंघन न कर पाए इसके लिए  संवैधानिक और कानूनी प्रावधान करने पड़ते हैं।

उन्होंने कहा आजादी की लड़ाई दरअसल भारत में मानवाधिकारों के सम्मान की लड़ाई थी। अंग्रेज मानवाधिकारों का सम्मान नहीं करते थे और भारतीयों की स्वतंत्रता, समानता, जीवन, सरकार चुनने का हक, आदि मानव अधिकारों का खुला उल्लंघन करते थे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि मानवाधिकार पूरी तरह से एक भारतीय विचार था। हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, एवं अन्य ग्रंथों में अनेक स्थानों पर मानव मात्र के सुख और कल्याण की कामना की गई है। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर द्वारा प्रताड़ित पोलिश महिलाओं और बच्चों को गुजरात के जामनगर के शासक जाम साहब दिग्विजयसिंह द्वारा शरण और हर प्रकार की सहायता दिए जाने को मानवाधिकार संरक्षण का एक बड़ा उदाहरण बताया।

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने उमंग फाउंडेशन के कार्यों से उदाहरण देकर बताया कि समाज में मानवाधिकार उल्लंघन की पहचान कैसे हो सकती है। और ऐसा होने पर युवा उसमें किस प्रकार हस्तक्षेप करके पीड़ित वर्ग को न्याय दिला सकते हैं। डीएसवाईए के संयोजक और विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर मुकेश कुमार ने युवाओं से मानवाधिकार संरक्षण के लिए काम करने की अपील की।

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