प्रदेश में मक्की व धान खरीद के सरकारी केंद्र तक नहीं
1 min readसीटू,अखिल भारतीय किसान सभा व अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू व हिमाचल किसान सभा ने देश की पहली मजदूरों,किसानों व खेत मजदूरों की संयुक्त हड़ताल के चालीस वर्ष पूर्ण होने पर हिमाचल प्रदेश के जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन किया। इस दौरान आयोजित हुए प्रदर्शनों व सेमिनारों इत्यादि में इस आंदोलन के दस शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी व शासक वर्ग की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संयुक्त आंदोलन को और ज़्यादा मजबूत करने की शपथ ली गयी। शिमला में हुए प्रदर्शन में विजेंद्र मेहरा,सत्यवान पुंडीर,बालक राम,हिमी देवी,पूर्ण चंद,दलीप सिंह,पवन शर्मा,विवेक कश्यप,कपिल शर्मा,जयशिव ठाकुर,सुरेश पुंडीर,अनिल ठाकुर,अमित राजपूत,गौरव,नीतीश राजटा,जगमोहन ठाकुर,डॉ विजय कौशल,जगदीप सिंह,श्याम लाल,रंजीव कुठियाला,पंकज शर्मा व चमन लाल आदि मौजूद रहे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,महासचिव प्रेम गौतम,राज्य कोषाध्यक्ष अजय दुलटा,हिमाचल किसान सभा राज्याध्यक्ष डॉ कुलदीप तनवर,महासचिव डॉ ओंकार शाद,राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि वर्तमान दौर में आज से चालीस वर्ष पूर्व डाली गई मजदूर किसान संयुक्त आंदोलन की नींव को और ज़्यादा मजबूत करने की ज़रूरत पहले से भी ज़्यादा बढ़ गयी है क्योंकि समाज में उत्पादन करने वाली शक्तियों मजदूरों व किसानों पर हमले पहले की तुलना में कई ज़्यादा बढ़े हैं। मजदूरों के खिलाफ लाये गए चार लेबर कोड व किसानों के खिलाफ लायी जा रही नीतियां इसका प्रमुख उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी को केंद्र की मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए लूट के अवसर में तब्दील कर दिया है। कोरोना काल में लाए गए मजदूर विरोधी चार लेबर कोड,किसान विरोधी तीन कृषि कानून,हालांकि किसान आंदोलन के दबाव में ये कानून निरस्त करने पड़े,बिजली विधेयक 2020,सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण,नई शिक्षा नीति,भारी बेरोजगारी,महिलाओं व दलितों पर बढ़ती हिंसा इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सरकार के ये कदम मजदूर,किसान,कर्मचारी,महिला,युवा,छात्र व दलित विरोधी हैं तथा पूंजीपतियों के हित में हैं। कोरोना काल में पिछले दो वर्षों में लगभग पन्द्रह करोड़ मजदूर रोज़गार से वंचित हो चुके हैं परन्तु सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद नहीं मिली। इसके विपरीत मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये। इसके तहत नियमित रोजगार के बजाए फिक्स टर्म,आठ के बजाए बारह घण्टे की डयूटी,हड़ताल करने पर मजदूरों पर ज़ुर्माना व मुकद्दमे दर्ज़ करने के मजदूर विरोधी प्रावधान हैं। इसी दौरान किसानों के खिलाफ तीन काले कृषि कानून बना दिये गए हालांकि किसान आंदोलन के कारण ये किसान विरोधी कृषि कानून केंद्र सरकार को निरस्त करने पड़े। केंद्र सरकार अब भी किसानों को फसल का समर्थन मूल्य देने की मांग को पूर्ण करने से पीछे हट रही है। हिमाचल प्रदेश में मक्की व धान खरीद के सरकारी केंद्र तक नहीं हैं। जनता भारी महंगाई से त्रस्त है। खाद्य वस्तुओं,सब्जियों व फलों के दाम में कई गुणा वृद्धि करके जनता से जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है। पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की बेलगाम कीमतों से जनता का जीना दूभर हो गया है। इन भारी कीमतों के कारण देश की तीस प्रतिशत जनता पिछले एक वर्ष में रसोई गैस का इस्तेमाल करना बंद कर चुकी है।
उन्होंने केंद्र सरकार से मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों को वापिस लेने की मांग की है। उन्होंने किसानों को डॉ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश अनुसार लाभकारी मूल्य देने तथा फसलों व फलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग की है। उन्होंने प्रति व्यक्ति 7500 रुपये की आर्थिक मदद,सबको दस किलो राशन,सरकारी डिपुओं में वितरण प्रणाली को मजबूत करने व बढ़ती महंगाई पर रोक लगाने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पर्यटन व ट्रांसपोर्ट कारोबार को बर्बादी से बचाने के लिए हिमाचल सरकार ने कुछ नहीं किया है। इस उद्योग की बर्बादी से प्रदेश में हज़ारों लोगों का रोज़गार खत्म हो गया है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश में सबसे ज़्यादा मजदूर मनरेगा व निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसलिए मनरेगा में हर हाल में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। हिमाचल प्रदेश कामगार कल्याण बोर्ड से पंजीकृत सभी मनरेगा व निर्माण मजदूरों को वर्ष 2020 में घोषित छः हज़ार रुपये की आर्थिक मदद सुनिश्चित की जाए।