दिखाई न देने पर जिस बेटी को सातवीं में स्कूल ने निकाला, राष्ट्रपति ने उसे दिया राष्ट्रीय पुरस्कार
1 min readउमंग फाउंडेशन के वेबिनार में दृष्टिबाधित दिव्या शर्मा ने सुनाई अपनी संघर्षों और सफलताओं की दास्तान
शिमला, 28 दिसंबर। राष्ट्रपति द्वारा दिव्यांगता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए विगत 3 दिसंबर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित दिव्या शर्मा (31) ने उमंग फाउंडेशन द्वारा आयोजित वेबिनार में कहा कि दिखाई न देने के कारण सातवीं कक्षा में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अंग्रेजी में एमए तक की समस्त पढ़ाई प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर की।
वह दृष्टिबाधित लोगों की टेक्नोलॉजी की विशेषज्ञ हैं। कंटेंट क्रिएशन से संबंधित उनका अपना बिजनेस है और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और यूएई आदि देशों के क्लाइंट्स के लिए वह काम करती हैं। वह मोटिवेशनल स्पीकर हैं। इसके अलावा वह 115 देश में सुने जाने वाले ऑनलाइन ‘रेडियो उड़ान’ की आरजे हैं और उसे पर तीन कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं। वह कराटे की ब्लू बेल्ट होल्डर, मैराथन धावक, गायिका, गिटार वादक और कवि भी हैं। उन्होंने अपने भाषणों और कार्यों से अभी तक हजारों लोगों को प्रेरणा दी है।
भारतीय चुनाव आयोग की दृष्टिबाधित ब्रांड एंबेसडर और उमंग फाउंडेशन की प्रवक्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर मुस्कान नेगी ने बताया कि यह वेबीनार दृष्टिबाधित दिव्या शर्मा के संघर्ष और सफलताओं से युवाओं को प्रेरित करने के लिए आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर और विकलांगता मामलों के नोडल अधिकारी डॉ. धीरेंद्र शर्मा ने की।
दिव्या शर्मा मूल रूप से ऊना जिले के महत्वपूर्ण की रहने वाली हैं। लेकिन अब उनका परिवार साथ लगते नया नंगल में रहता है। उन्हें “श्रेष्ठ दिव्यांगजन श्रेणी” के अंतर्गत राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय विकलांगता दिवस पर 3 दिसंबर को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने बताया 3 वर्ष की उम्र में ग्लूकोमा नामक बीमारी के कारण उनके आंखों की रोशनी लगभग समाप्त हो गई थी। सातवीं कक्षा में स्कूल से इसीलिए निकाल दिया गया। स्कूल का मानना था की दृष्टिबाधित बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाएंगे।
दिव्या ने बताया कि उन्होंने अपने पिता अरुण शर्मा और मां सुषमा शर्मा तथा भाई बहन के सहयोग से अपनी सारी पढ़ाई प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर पूरी की। जीवन में लगातार संघर्ष किया और आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ समाज के अन्य वर्गों के लिए कुछ बेहतर करने का लक्ष्य भी सामने रखा। लोग अक्सर उन्हें दया भावना से देखते थे और सोचते थे कि यह “अंधी लड़की” जीवन में कुछ नहीं कर पाएगी। अब राष्ट्रपति से पुरस्कार मिलने के बाद वही लोग बधाई दे रहे हैं।
उन्होंने युवाओं से कहा कि वे आत्मविश्वास को कम न होने दें। इसके साथ ही टेक्नोलॉजी को अपना दोस्त बनाएं। दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए तो टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले लैपटॉप एवं अन्य टेक्नोलॉजी एक वरदान है। उन्होंने कहा की सभी स्कूलों एवं अन्य शिक्षण संस्थानों मे
दृष्टिबाधित एवं अन्य विद्यार्थियों के लिए सुगम्य पुस्तकालय बनाए जाने चाहिए। इसमें टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटर एवं अन्य उपकरण बच्चों को पढ़ाई में मदद करते हैं। इसके अलावा सभी शिक्षण संस्थानों में विकलांगता मामलों के नोडल अधिकारी भी होने चाहिए।
उन्होंने बच्चों और युवाओं से फिटनेस पर खास ध्यान देने के लिए कहा। उनका कहना है की हर प्रकार की दिव्यांगता वाले बच्चों को अपनी परिस्थिति के अनुरूप कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए।
प्रोफेसर धीरेंद्र शर्मा ने कहा कि वह हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए और बेहतर वातावरण बनाने में टेक्नोलॉजी का सहारा लेंगे।
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने बताया कि दिव्या शर्मा पिछले लगभग 11 वर्षों से उमंग फाउंडेशन से जुड़ी हैं। वर्ष 2014 में उन्होंने फाउंडेशन के आमंत्रण पर शिमला में पहली बार मीडिया के सामने लैपटॉप पर काम करके बताया था कि दृष्टिबाधित लोग किस तरह टेक्नोलॉजी को अपनी आंख बना लेते हैं। कार्यक्रम में दिव्या ने अनेक युवाओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।