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भारत के गौरवमयी इतिहास के रचयिता ‘‘ठाकुर राम सिंह’’

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(15 फरवरी, 2021 – 106वीं जयंती)

कुछ लोग इतिहास लिखते हैं और कुछ इतिहास रचते हैं और ऐसे ही इतिहास रचयिता थे ठाकुर राम सिंह। आज हम जानते हैं कि विश्वसनीयता को खोते जा रहे पाश्चात्य पैमानों पर जिस तरह इतिहासकार भारत के इतिहास का लेखन कर रहे आ रहे हैं वह न केवल भारत के गौरव को नष्ट करने वाला रहा, बल्कि विश्वगुरू के रूप भारत से विश्व को अध्यात्म, विज्ञान, कला, संस्कृति, योग, साहित्य और दर्शन के रूप में मिलने वाले मार्गदर्शन को भी अवरूद्ध करता रहा है। ठाकुर राम सिंह ने राष्ट्रीय विचार के धरातल पर भारतीय इतिहास के लेखन में मौजूद इन खामियों को न केवल पहचाना बल्कि उसके निराकरण के लिए साक्ष्यों के आधार पर भारतीय इतिहास-शास्त्र को विश्व पटल पर रखा। वेदों और मनवंतरों के आधार पर महाकाल, वर्ष प्रतिपदा, सृष्टि की उत्पत्ति और कालगणना जैसे जटिल सिद्धांतों को नवीन मापदंड़ों अनुसार सटिक व सरल शब्दों में रखा। परिणामस्वरूप इतिहासकारों को अब सही दिशा में इतिहास लिखने का अवसर मिल रहा है और भारतवासी को भी अपने गौरवमयी, कालजयी इतिहास को पहचान कर स्वाभिमान हो रहा है।

वीरव्रती यशस्वी इतिहास पुरूष ठाकुर राम सिंह जी का जन्म विक्रमी संवत् 1971 के फाल्गुन मास की 4 प्रविष्टे तदनुसार माघ शुक्ल तृतीय, कलियुगाब्ध 5016 एवं ईस्वी सन् 16 फरवरी 1915 को वर्तमान हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के झण्डवीं गांव में माता नियातु की कोख से पिता भाग सिंह के घर में हुआ था। वहीं इस वर्ष 15 फरवरी 2021 को ठाकुर राम सिंह की 106वीं जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर ठाकुर जगदेव सिंह शोध संस्थान नेरी, हमीरपुर में संस्थान और हिमाचल प्रदेश भाषा कला संस्कृति अकादमी, शिमला के तत्वावधान में तीसरे राज्य स्तरीय जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है।

भारतवर्ष का गौरवशाली इतिहास सत्य तथ्यों के साथ प्रकाश में लाना ठाकुर रामसिंह जी का परम लक्ष्य रहा है। इसके लिए वे देशभर में निरंतर प्रवास करते रहे। लक्ष्य पूर्ति के ध्येय से वे आजीवन अपनी 96 वर्ष की आयु पर्यन्त कार्य करते रहे और असंख्य विद्वानों को लक्ष्य पूर्ति की अदम्य प्रेरणा देकर 6 सितम्बर, 2010 को इस लोक से चले गए।

देशभक्ति की प्रेरणा से बने संघ के प्रचारक

ठाकुर राम सिंह बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली और कुशाग्र बुद्धि से सम्पन्न थे। सन् 1941 में वे लाहौर में एफ.सी. महाविद्यालय में एम.ए. (इतिहास) के छात्र थे। उसी बीच वे सितम्बर 1941 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। सन् 1942 में एम.ए. की अंतिम परीक्षा में इन्हें प्रथम स्थान अर्जित किया। इन्हें इसी महाविद्यालय द्वारा इतिहास प्रवक्ता के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उसको स्वीकार नहीं किया और राष्ट्रभक्ति प्रेरणा से ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए। 1942 में लाहौर संघ शिक्षा वर्ग से 58 स्वयंसेवकों को प्रचारक का दायित्व दिया गया, जिसमें ठाकुर राम सिंह भी एक थे। इन्हें पंजाब के तत्कालीन प्रांत प्रचारक माधव राम मूले ने कांगड़ा के प्रचारक के तौर पर नियुक्त किया। ठाकुर राम सिंह सन् 1946 से 1971 तक करीब 22 वर्ष असम के प्रान्त प्रचारक रहे। इस दौरान इन्होंने पूर्वोत्तर भारत में संघ कार्य का कोने-कोने तक विस्तार किया।

ठाकुर राम सिंह को सन् 1988 में भारतीय इतिहास संकलन की महत्वकांक्षी योजना को समुचित दिशा प्रदान करने की जिम्मेवारी मिली। 1992 में ये सर्वसम्मति से अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और वर्ष सन् 2002 तक इस पद पर रहे।

महाकाल सिद्धांत

ठाकुर रामसिंह जी पाश्चात्य जगत के उस आरोप से बेहद आहत थे जिसमें पाश्चात्य चिन्तक ये सिद्ध करने में लगे रहे कि भारत का इतिहास कालगणना रहित है। उन्होंने पाश्चात्य जगत के इस चिन्तन को प्रमाणों के आधार पर निरस्त किया। उन्होंने वैदिक सिद्धांतों के प्रबल प्रमाणों के आधार पर 197 करोड़ वर्ष के भारतीय इतिहास के गौरवमयी प्रमाण विश्व के समक्ष रखे। पाश्चात्य जगत के सिद्धांतकारों के उस विचार पक्ष को समझा जहां से यह भ्रांति फैली कि भारत के चिन्तकों का कालक्रमिक इतिहास लिखना नहीं आता। ठाकुर रामसिंह जी ने अपने सिद्धांत में यह स्पष्ट किया कि भारत का कालक्रमिक इतिहास चार-पांच हजार वर्ष का नहीं, वह तो 197 करोड़ वर्ष के आदि बिन्दुओं से प्रारम्भ होता है। उन्होंने वैदिक प्रमाणों के आधार पर कहा- ‘‘हिरण्यगर्भ के विस्फोटित विश्व द्रव्य से जब सृष्टि का चक्र शुरू हुआ तो सर्वप्रथम कालपुरूष (काल) की स्थापना हुई और लाखों वर्षाें के बाद जब मनुष्य जीवनयापन करने की सभी साधनभूत आवश्यकताएं पूर्ण हो गई तो मानव उत्पत्ति हुई। अतः भारत में प्रकृति का इतिहास और पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का इतिहास कालक्रम में ऋषि दर्शन में आया। ऋषियों ने दोनों प्रकार के इतिहास को श्रौत परम्परा से छन्दोबद्ध किया। इसी कारण भारत के गौरवमयी इतिहास को ईसा पूर्व (बी.सी.) और ईस्वी सन् (ए.डी.) के कालक्रम से नहीं लिखा जा सकता।’’

सृष्टि एवं वर्ष प्रतिपदा (नववर्ष)

ठाकुर रामसिंह जी की चिन्तनभूमि का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है सृष्टि की उत्पति। वेदों और शास्त्रों के प्रबल प्रमाणों के आधार पर उनका चिन्तन था कि सृष्टि, स्थिति और लय इतिहास के तीन महान बिन्दु हैं। ब्रह्मपुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है ;

चैत्र मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहिन्।

शुक्ल पक्षे समग्रं तु तदा सूर्योदये सति।।

अर्थात ब्रह्मा ने चैत्र मास में शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय काल में सृष्टि की रचना की। काल का यह क्षण चैत्र मास शुक्ल पक्ष वर्ष प्रतिपदा (नववर्ष) के रूप में था। इस तरह आज से 1 अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 46 हजार, 127 वर्ष पूर्व (ईस्वी सन् के अनुसार) भारत भूमि पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही पहले मानव का अर्विभाव हुआ। अतः यह दिन सम्पूर्ण मानव कुल का प्रथम दिवस है।

भारतीय इतिहास शास्त्र की चिन्तनधारा

ठाकुर राम सिंह इतिहास को शास्त्र करते थे। उन्होंने प्रमाणित किया कि भारतीय चिन्तनधारा इतिहास को कला नहीं अपितु विज्ञान और शास्त्र मानती है। इसके वे दो कारण व प्रमाण प्रस्तुत करते हैं- पहला इतिहास की विषय वस्तु प्रकृति अथवा सृष्टि के इतिहास से आरंभ होती है। जिसमें सम्पूर्ण विज्ञान निहित है। इसी कारण भारतीय परम्परा में इतिहास-पुराण को पञ्चम वेद कहा गया है- इतिहासपुराणे पञ्चमो वेदः। दूसरा कारण है मानव की उत्पत्ति और उसका प्रसारण है। इसी कारण मानव वंश परम्परा पुराणों में प्रतिपादित है। इन्ही दो कारणों के बल पर इतिहास को शास्त्र की संज्ञा दी गई।

ईसापूर्व और ईस्वीसन् के आधार पर भारतीय इतिहास लिखने पर आपत्ति

ठाकुर राम सिंह का मत था कि इतिहासकार ईसापूर्व और ईस्वीसन् के आधार पर अपने-अपने देशों का इतिहास लिखें, इस पर हमें आपत्ति नहीं। लेकिन जब ये चिंतक भारत के इतिहास को भी इसी दृष्टिकोण से लिखने का प्रयास करते हैं तो वह मिथ्या साबित होता है। जो साबित करता है कि इतिहास की तत्व दृष्टि काल के तत्वदर्शन पर आधारित है। जिससे महर्षि कणाद् ने काल को 9 तत्वों में परिगणित किया। बाईबल ग्रंथ ने पृथ्वी की उत्पत्ति 6000 वर्ष पूर्व होने का संकेत किया। अशर नामक पादरी ने 16वीं शताब्दी में ये घोषणा कर दी थी कि विश्व की उत्पत्ति 4000 वर्ष पूर्व हुई। यह मिथक आगे चलकर इतिहास लेखन का तत्व बन गया। विज्ञान ने जैसे-जैसे सृष्टि और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के प्रमाण खोजने आरम्भ किए वैसे-वैसे इतिहास लेखन के ये दृष्टिकोण स्वयं ही निरस्त होने लगे।

इतिहास शास्त्र के चिंतन पर अवश्य निकट आएगा पाश्चात्य जगत

पाश्चात्य वैज्ञानिक हैम्होल्टज ने अपने शोध में पृथ्वी की आयु 1 करोड़ 70 लाख वर्ष पूर्व घोषित कर डाली तो वहां उनका विरोध होना स्वाभाविक था। जबकि आज विज्ञान भारत के ऋषियों द्वारा दर्शित कालगणना के सिद्धांतों के निकट है। ठाकुर राम सिंह अपने वैचारिक चिन्तन से बहुत स्पष्ट थे कि पाश्चात्य जगत का इतिहास चिन्तन एक दिन भारत के इतिहास शास्त्र के चिन्तन के निकट अवश्व ही आएगा।

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