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सराज घाटी की दो दिवसीय दिवाली संपन्न

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सराज घाटी के जंजैहली क्षेत्र में दो दिन तक दिवाली मनाई जाती है। पहले दिन देव बायला नारायण को मंदिर परिसर में निकाला जाता है। उसके बाद अग्नि कुंड के चारों ओर देव नृत्य होता है।

वैसे तो पुराने समय में पूरी रात लोग नाचते थे, जिसे “नाट’ कहा जाता है, लेकिन समय तब्दील हुआ, अब नाट नहीं होता और दूसरे दिन भी देवनारायण के रथ को जंजैहली बाजार से होकर जंजैहली के मैदान में लाया जाता है और और समुद्र मंथन का प्रतीकात्मक अभिनय किया जाता है।

लोग कुशा घास का एक रस्सा बनाते हैं और उस रस्सी को समुद्र मंथन की तरह एक-दूसरे की तरफ खींचते हैं। यह रस्सा वासुकी नाग का प्रतीक है और इसे टूटने के बाद कुशा घास को आशीर्वाद के रूप में सबको बांटा जाता है। इसके अलावा यहां मेला भी हुआ लोगों ने गर्म कपड़े कोट कोटियां, जुराबें और भी बहुत सारे सामान की खरीद फरोख्त की।

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