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चेतन बरागटा की राह आसान नहीं

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भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री स्वर्गीय नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा के निर्दलीय चुनाव लड़ने से जुब्बल-कोटखाई सीट खासी चर्चा में है। भाजपा आलकमान ने चेतन बरागटा को दरकिनार कर जिला परिषद सदस्य रही नीलम सरैइक को उम्मीदवार बनाया है। चेतन बरागटा के मैदान में उतरने से इस सीट पर अब त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। चेतन बरागटा ने निर्दलीय नामांकन वापिस लेने से साफ इंकार कर दिया है। कांग्रेस का गढ़ होने के कारण इस सीट पर भाजपा की विजय पताका लहराना प्रदेश सरकार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।

इस सीट पर अधिकतर बार कांग्रेस ने जीत की पताका लहराई थी। ये सीट पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की वजह से चर्चित रही है। वर्ष 1990 में जनता दल की टिकट पर उतरे पूर्व मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर ने वीरभद्र सिंह को शिकस्त दी थी। बीते 1951 से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दस बार इस सीट पर कब्जा जमाया है। कांग्रेस के रामलाल ठाकुर यहां से सबसे ज्यादा छह बार विधायक रहे हैं।

वहीं, उनके पोते रोहित ठाकुर ने 2012 में यहां से चुनाव लड़ा था। दिचलस्प बात यह है कि इस सीट पर 1990 के चुनाव में वीरभद्र सिंह को रामलाल ठाकुर के हाथों हार मिली थी। भाजपा के तेजतर्रार नेता रहे नरेंद्र बरागटा ने इस सीट पर कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ा था। नरेंद्र बरागटा की बदौलत दो बार यह सीट भाजपा के खाते में गई है। नरेंद्र बरागटा यहां से दो बार विधायक रहे हैं। 13 बार इस सीट पर चुनाव हुए और 10 मर्तबा कांग्रेस को यहां से जीत मिली है। 1990, 2007 और 2021 के चुनाव को छोड़ दें तो बाकी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है।

इस उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रोहित ठाकुर 2003 और 2012 में यहां से चुनाव जीते थे। वहीं नीलम सरैइक और चेतन बरागटा का यह पहला चुनाव है। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चेतन बरागटा को पिता की मृत्यु की सहानुभूति का फायदा मिल सकता है। लेकिन भाजपा की टिकट न मिलने पर उनकी राह आसान नहीं होगी।

 

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