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ग़ैरकानूनी प्रोफेसरों की भर्तियों के खिलाफ पिंक पैटल्स पर धरना प्रदर्शन

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आज एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने अयोग्य उपकुलपति और ग़ैरकानूनी प्रोफेसरों की भर्तियों के खिलाफ पिंक पैटल्स पर धरना प्रदर्शन किया गया।

एसएफआई का साफ मानना है कि प्रदेश सरकार लगातार विश्वविद्यालय और शिक्षा का भगवाकरण करने पर आतुर है हम देखते हैं कि विश्वविद्यालय के पुराने उपकुलपति एडीएन वाजपेयी के कार्यकाल के खत्म होने के बाद विश्वविद्यालय लगभग डेढ़ साल तक बिना उपकुलपति के रही। उसके बाद प्रदेश की भाजपा सरकार के करीबी माने जाने वाले प्रो सिकन्दर कुमार को विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया औऱ पहले ही दिन विश्वविद्यालय में पहुंचते ही इनका बयान आता है वो आरएसएस की विचारधारा से संबंधित है और आजीवन उस विचारधारा के लिए काम करेंगे। एक ओर भारतीय संविधान किसी भी शिक्षक को सीधे तौर पर किसी राजनैतिक गतिविधियों में शामिल होने की इजाजत नहीं देता और दूसरी ओर हमारे उपकुलपति महोदय बतौर प्रोफेसर सेवाएं देते समय बीजेपी एससी सेल के अध्यक्ष के रूप में काम किया और दूसरी ओर यूजीसी के नियमों के अनुसार एक प्रोफेसर तभी विश्वविद्यालय का उपकुलपति बन सकता है जब उसके पास बतौर प्रोफेसर 10 साल का कम से कम अनुभव हो लेकिन सरकार का करीबी होने के कारण विश्वविद्यालय में उपकुलपति पड़ पाने के लिए प्रोफेसर सिकंदर कुमार ने 10 साल पूरा होने के 3 महीने पहले ही विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनने के लिए अपने शैक्षणिक अनुभव के साथ छेड़छाड़ के ये पद प्राप्त किया है। एक प्रशासनिक पद पर बैठे व्यक्ति को ये बात शोभा नही देती अगर प्रशासन में बैठा व्यक्ति पद के लोभ में ऐसा कर सकता है तो और किसी से क्या उम्मीद की जा सकती है।

कैंपस सचिव रॉकी के बताया कि विश्वविद्यालय में हो रही प्रोफेसरों की भर्तियां भी शक के घेरे में है। विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों की भर्तियां तक करवाई गई जब पूरे देश में कोरोना अपने चरम पर था लेकिन भारतीय संविधान जो हमें समान अवसरों का अधिकार देता है कि खुले तौर पर अवहेलना की गई है। कोरोना महामारी के कारण जब ट्रांसपोर्ट बन्द था तो इंटरव्यू में सभी अभ्यर्थियों के लिए समान अवसर कैसे मिला। धांधलियों के द्वारा सरकार द्वारा अपने लोगों की भर्ती करने के लिए अयोग्य व्यक्तियों की भी भर्ती की गई है। विश्वविद्यालय में जब यूजीसी की न्यूनतम योग्यता पीजी और NET/SET के आधार पर अगर प्रोफेसरों की भर्ती होगी तो जिस गुणात्मकता की बाग की जाती है को कैसे हासिल किया जा सकता है। एक पीजी और NET/SET क्वालिफाइड कैसे विश्वविद्यालय में शोध का काम करवा सकता है। एसएफआई का स्पष्ट मत है कि ये भर्तियां विश्वविद्यालय ऑर्डिनेंस को ताक पर रख कर की जा रही है जिसकी एसएफआई कड़े शब्दों में निंदा करती है और साथ ही प्रदेश सरकार मांग करती है कि इन भर्तियों पर जांच कमेटी बिठाई जाए ताकि विश्वविद्यालय में योग्य व्यक्तियों की ही भर्ती हो।

परिसर अध्यक्ष विवेक राज ने बताया कि right to information act के आधार पर प्रशासन से इन भर्तियों की जानकारी मांगी तो प्रशासन की ओर से कोई जवाब नहीं आता है ये दर्शाता है कि विश्वविद्यालय धांधलियों का अड्डा बन चुका है और अपनी कमियों को छुपाने के लिए छात्रों को कोई जवाब इन भर्तियों का नहीं दिया जाता है जिसकी एसएफआई कड़े शब्दों में निंदा करती है।

एसएफआई ने प्रदेश सरकार को चेतावनी देते हुए यह मांग की है कि शिक्षा की गुणवत्ता को बचाने के लिए इन भर्तियों पर और वीसी की अयोग्यता पर जल्द प्रदेश सरकार ने कोई अहम कदम नहीं उठाया तो आने वाले समय मे एसएफआई प्रदेश भर के छात्रों को लामबंद करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश सरकार के खिलाफ आंदोलन के अंदर जाएगी जिसका जिम्मेवार प्रदेश सरकार होगी।

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