मशरूम अपशिष्टों से बनाई जा सकती ऑर्गेनिक खाद
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मशरूम अपशिष्टों से कृषि और बागवानी कार्य में लाभ मिलेगा। राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र सोलन के विशेषज्ञों की मानें तो मशरूम के वेस्ट में नाइट्रोजन, फासफोर्स और पोटाशियम की प्रचुर मात्रा होती है जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। इसका प्रयोग किसान-बागवान मशरूम अपशिष्टों को रि-साइकिल करने के बाद तो कर ही सकते हैं साथ ही साथ केंचुआ खाद बनाने में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र सोलन के विशेषज्ञों ने मशरूम के अपशिष्टों को कृषि और बागवनी के लिए उत्तम बताया है। मशरूम वेस्ट को साफ-सुथरी जगह पर गड्डा खोदकर उसमें 8 से 16 माह तक अच्छी तरह सड़ने के बाद तैयार खाद का प्रयोग किया जा सकता है।सोलन सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में किसानों ने वेस्ट की खाद तैयार कर खेतों में डालनी शुरू कर दी है।
पूरी जानकारी ना होने के कारन कई बार किसान-बागवान मशरूम के कच्चे अपशिष्ट खेतों में डाल देते हैं जो की जमीन के लिए काफी हानिकारक होती है। साथ ही मशरूम वेस्ट खुले में छोड़ने से कई प्रकार की पर्यावरण समस्याएं होती हैं जिसमे जमीन में मिलने वाला पानी भी दूषित होना भी शामिल है। कई हानिकारक सॉल्ट भूमि के नीचे पानी में मिल जाते है जिससे कार्बन और नाइट्रोजन की अधिकता के कारण कई दूसरे जीवाणु पनपते हैं।
भारत में प्रतिवर्ष करीब पांच लाख मीट्रिक टन मशरूम वेस्ट निकलता है जिसमे 1.9 फीसदी नाइट्रोजन, 0.4 फासफोर्स और 2.4 फीसदी पोटाशियम होता है। यह भूमि में पोषक तत्वों की कमी दूर कर उपजाऊ क्षमता कई गुना बढ़ाता है। मशरूम वेस्ट को पांच फीसदी के हिसाब से खेतों में डालने से पोटाशियम और फासफोर्स की कमी दूर होगी। इसे 25 फीसदी के हिसाब से खेतों में मिलाया जाए तो नाइट्रोजन की कमी भी दूर करेगा।