Himachal Tonite

Go Beyond News

हिमालय के लिए नीति बनाने की जरूरत: डॉ. वनीत जिस्टू

1 min read

शिमला। हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एचएफआरआई) में वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वनस्पति-विज्ञानी डॉक्टर वनीत जिस्टू ने कहा है हिमालय क्षेत्र के लिए अलग ढंग से नीतियां बनाने की जरूरत है। विकास के लिए पनबिजली परियोजनाएं एवं उद्योग जरूरी हैं। लेकिन उनसे पर्यावरण को नुकसान न हो, इसके लिए प्रभावी निगरानी तन्त्र होना चाहिए।

कार्यक्रम की संयोजक एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में पीएचडी कर रही दिव्यांग छात्रा अंजना ठाकुर ने बताया कि डॉ. वनीत जिस्टू उमंग फाउंडेशन द्वारा मानवाधिकार संरक्षण पर 26वें साप्ताहिक वेबिनार में  बोल रहे थे। उनका विषय था “स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार और सामाजिक दायित्व”।

उन्होंने प्रतिभागी युवाओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। उन्होंने मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में उमंग फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उनका कहना था कि युवाओं में नई  चेतना लाकर ही हम धरती को रहने लायक बना सकते हैं।

डॉ. वनीत जिस्टू ने पर्यावरण संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार द्वारा किए गए अनेक प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि  स्वच्छ पर्यावरण एक प्रमुख मानवाधिकार है। इसे लागू कराने के लिए न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार केंद्र सरकार की योजनाओं से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल रही है।

उन्होंने कहा कि पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है। हमारे वन और वनस्पतियां ग्लोबल वार्मिंग का असर कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य ने उन्हें सम्मान नहीं दिया। हमने कंक्रीट के जंगल बना दिए और हमारे जीवनदाता वनों को काटा जाता रहा। जबकि वनों और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में झाड़ियों के  कम होने या समाप्त होने से धरती पर सभी प्रकार का जीवन समाप्त हो जाएगा। अनेक प्रकार की औषधियां सिर्फ हिमालय क्षेत्र में ही मिलती हैं जो समाप्त हो रही हैं।

डॉ. जिस्टू ने सड़कों से लेकर पहाड़ी नालों और नदियों में कचरा फेंकने के गंभीर परिणामों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में इस्तेमाल किए जा रहे मास्क अब बड़े पैमाने पर समुद्री जीव जंतुओं जान ले रहे हैं। कचरे के वैज्ञानिक प्रबंधन का अभाव सभी जीव जंतुओं  और मनुष्यों के लिए खतरा है।

उन्होंने कहा कि हिमालय के ग्लेशियरों, नदियों और वनों से दुनिया की बहुत बड़ी आबादी का जीवन जुड़ा हुआ है।  उद्योगों के रासायनिक और शहरी प्लास्टिक कचरे से पहाड़ों को स्थाई नुकसान पहुंच रहा है। पनबिजली परियोजनाओं एवं अन्य उद्योगों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की सख्त निगरानी की जरूरत है।

उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों में जंगल कट रहे हैं तो शहरी क्षेत्रों में हरे-भरे पार्क विकसित नहीं किए जाते। वनीकरण के नाम पर अक्सर विदेशी प्रजाति के पौधे लगाए जाते हैं जिन पर गिलहरी, पक्षी, कीट-पतंगे आदि भी अपना घर नहीं बनाते। जैव विविधता को बचाए रखना बहुत जरूरी है।

कार्यक्रम के संचालन में उमंग फाउंडेशन की युवा टीम के सदस्यों – सवीना जहां, संजीव शर्मा,  उदय वर्मा, यश ठाकुर, कुलदीप कुमार, और दीक्षा कुमारी ने सहयोग दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *