आधुनिक युग में प्राकृतिक बॉडी खो रही अपना महत्व
1 min readशिमला, जून 5 Himachal Tonite Bureau
आज विश्व पर्यावरण दिवस पानी के महत्व को नजरअंदाज करना बहुत ही गलत होगा। अगर शिमला शहर की बात करें तो कुछ वर्ष पूर्व पानी के संकट के चलते सभी शहरवासी त्राहि-त्राहि कर रहे थे और दूसरी ओर अगर हम गौर से देखें शिमला शहर में प्राकृतिक पानी की बॉडी की कोई कमी नजर नहीं आएगी।
एक ऐसी प्राकृतिक बॉडी शिमला के वार्ड नो 1 शांकली में मौजूद है जो स्थानीय लोगों की माने तो पिछले 100 वर्षों से भी ज्यादा समय से बहती चली आ रही है। “हमारे बुजुर्ग बताया करते थे के सन् 9147 भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के पहले से ही ये पानी की बॉडी बहती आ रही है”, प्रभा स्थानीय निवासी ने बताया।
वक्त के साथ-साथ बाड़ी के कई रूप बदले कभी उसे होदी बनाया गया तो कभी छोटी पाई पर डाल उसे प्याऊ का रूप देने की कोशिश की गई। इस समय लोगों की सुरक्षा के लिए बॉडी को दीवारों और छत से ढक दिया गया है। परंतु पानी के इर्द-गिर्द जमा कूड़ा कचरा एक अलग ही दास्तां बयां करता है। यह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्वक और चिंता का विषय है की आधुनिक युग में बॉडी अपना महत्व खोती जा रही है।
बहते हुए पानी को हिंदू धर्म में भी बहुत ही महत्व दिया गया है जैसा कि पंडित जयदीप ने बताया “पानी देवी देवता का स्वरूप है और मनुष्य उन्हें बहते हुए पानी के माध्यम से भोग अर्पित करते हैं।”
पंडित जी ने कहा कि जो लोग पानी में सामग्री के साथ कागज़ या अन्य गंदगी डालते है उन्हे शास्त्रों के मुताबिक दोष लगता है। ऐसे मनुष्य देवी देवताओं को गंदगी अर्पित कर कृपा के स्थान पर उनके क्रोध के पात्र बन जाते है।