प्राकृतिक खेती ने प्रवीन को दिखाई आत्मनिर्भरता की राह
1 min readहिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े ज़िला कांगड़ा में जहां पर चारों कृषि जलवायु अनुक्षेत्र प्राकृतिक रुप से विद्यमान हैं; वहां मुख्यतः अनाज वर्गीय फसलें उगाई जाती हैें। लेकिन अब किसान परम्परागत कृषि के स्थान पर अन्य व्यावसायिक फ़सलों की तरफ रुख़ कर रहे हैं। इस ज़िला के तापमान में काफी विविधताएं देखने में आती हैं। जहां गर्मी के दिनों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंच जाता है; वहीे सर्दियों के दिनों में तापमान पांच डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। ऐसे में परम्परागत कृषि के सहारे आत्मनिर्भरता की अवधारणा असंभव सी लगती है। लेकिन इस धारणा को अब यहां के किसान धीरे-धीरे बदल रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान हैं देहरा विकास खंड के प्रवीण कुमार। प्रवीण कुमार ने खेती से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ज़िला के किसानों के लिए मिसाल पेश की है। प्रवीण कुमार ने बताते हैं ‘‘ वर्ष, 2018 में गांव में कृषि विभाग ने प्राकृतिक खेती पर एक शिविर आयोजित किया था। शिविर में कृषि अधिकारियों ने प्राकृतिक खेती के बारे में बताया और इस खेती में प्रयोग होने वाली तकनीक का व्यावहारिक ज्ञान भी दिया। मैंने इन तकनीकों के आधार पर घर पर ही प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले तमाम स्तम्भों का प्रयोग करना अपनी खेती में शुरू कर दिया। प्राकृतिक खेती के प्रयोग करने से अब वह अनाज वर्गीय फ़सलों के अलावा बहुतायत में सब्ज़ियां भी उगा रहे हैं और एक खेत में एक से ज़्यादा फ़सलें उगा कर मुनाफ़ा कमा रहे हैं। पहले परम्परागत तरीक़े से फ़सलें उगाने पर खेती इतनी लाभदायक में नहीं थी। प्राकृतिक खेती अपनाने से उन्हें बाक़ी फ़सलें उगाने में भी सहायता मिल रही है।
प्रवीण कुमार ने बताया कि शुरूआत में उन्हें अच्छी फ़सल प्राप्त करने के लिए रसायनों का प्रयोग करना पड़ा; जिससे उनके खेतों की उर्वरक क्षमता साल-दर-साल गिरने लगी और कुछ समय बाद उपज में बढ़ोतरी दर्ज होना बंद हो गई।
वर्ष, 2018 में प्रवीण कुमार ने आतमा परियोजना द्वारा आयोजित सुभाष पालेकर के छः दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। उसके बाद प्रवीण कुमार ने दो दिवसीय कृषि भ्रमण में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती द्वारा लगाए गये प्रदर्शन प्लॉट देखे और किसानों से बातचीत करके तीन कनाल भूमि में प्राकृतिक खेती शुरू की; जिसमें उन्हांेने एक से ज़्यादा सब्जियां व सह फ़सलें उगाईं। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने प्राकृतिक खेती से मिक्सिंग करके फ़सलें उगाईं तो उनकी पैदावार दोगुनी हो गई। गेहूं की एक देसी क़िस्म ‘बंसी चना’ और सरसों की मिक्सिंग करने पर उनको काफी बेहतर परिणाम मिले।
प्रवीण कुमार ने बताया कि उन्होंने ‘‘साहीवाल’’ नामक देसी नस्ल की एक गाय भी पाली है। वह समय-समय पर प्राकृतिक खेती के सम्बन्ध में आतमा परियोजना के अधिकारियों से जानकारी लेते रहते हैं और प्राकृतिक खेती के चार स्तम्भों बीजामृत, जीवामृत, अच्चाधन तथा वापसा का पूरा ध्यान रखते हैं; जिससे खेती की लागत कम करने और स्वस्थ एवं पोषणयुक्त्त भोजन उगाने में मदद मिलती है। वह इसके परिणामों से बेहद सन्तुष्ट हैं और अब वह प्राकृतिक खेती की मदद से बिना रसायनों के खेती करते हैं और मटर, गोभी, मूली, धनिया, पालक, शलगम, भिंडी, फ्रेंचबीन, प्याज़, अदरक, बैंगन और सरसों इत्यादि फ़सलें सफलतापूर्वक उगा रहे हैं। अब वह प्रतिमाह कम से कम 25 हज़ार रुपये कमा रहे हैं।