किसान के मन की बात सुनो कुर्सी के मन की बात नहीं :राम लाल ठाकुर
1 min readअघोषित इमरजेंसी पर भी कुछ बोलें लोग…राम लाल ठाकुर
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य, पूर्व मंत्री व विधायक श्री नयना देवी जी राम लाल ठाकुर ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों में आपात काल जरूरी नहीं होता है, इस विषय पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी भी 3 मार्च 2021 को अपना वक्तव्य रख चुके हैं, लेकिन लोगों को यह भी जानना और कहना चाहिए कि जो अघोषित आपातकाल देश मे चल रहा है वह तो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए उससे भी ज्यादा घातक है। वर्तमान परिस्थितियों में तो मई 2014 से लेकर अब तक ऐसे फैसले लिए गए हैं जो किसी भी सम्राज्यवादी राष्ट्र में लिए जाते रहें हों।
उन्होंने कहा कि आज जिस तरह के भयावह आपातकाल के दौर में हम हैं वह घोषित नहीं बल्कि अघोषित है। योजना आयोग से लेकर नीति आयोग तक देख लीजिए, आर.बी.आई. से लेकर सी बी आई तक देख लीजिए, नोटबन्दी से लेकर किसान आंदोलन तक देख लिजिये कोई भी फैसला लोकतांत्रिक नहीं लग सकता। किसानों के तीन काले कानूनों की वापसी हेतु किसान सात माह से संघर्षरत हैं आम लोंगो ने भी इसे उनका मौलिक अधिकार मान कर उनके आंदोलन को जायज़ मान लिया है पर सरकार और प्राकृतिक सख़्ती के बावजूद उनकी मांगें जस की तस बनी हुई हैं। इससे ज्ञात होता है कि किसान आंदोलन की कमर तोड़ने के लिए इसे लंबा खींचा जा रहा है।
यह कैसी जनता की सरकार है जो देश के लगभग 50 प्रतिशत किसानों की उपेक्षा कर रही है। इसी संदर्भ में किसान संयुक्त मोर्चा आज के दिन यानी 26 जून को देश भर में राजभवनों पर धरना दे रहा है। अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान काले झंडे दिखा रहा है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन भेज रहा है। जिसे उन पीड़ित किसानों ने ” *रोष पत्र”* नाम दिया है। लेकिन किसान कोरोना वायरस काल में भी नहीं हिला वे बिना मांगे पूर्ण हुए जाने को तैयार नहीं हैं। अभी तक उनके पांच सौ से अधिक साथी इस दौरान शहीद भी हो चुके हैं।
इसलिए उनमें सरकार के खिलाफ रोष निरंतर बढ़ ही रहा है । देश के किसान ने “ *खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ”* तक दे डाला है और पिछले सात महीने से भारत सरकार ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई हैं। देश की राजधानी में अपनी आवाज सुनाने के लिए आ रहे अन्नदाता का स्वागत करने के लिए इस सरकार ने उनके रास्ते में पत्थर लगाए, सड़कें खोदीं, कीलें बिछाई, आंसू गैस छोड़ी, वाटर कैनन चलाए, झूठे मुकदमे बनाए और किसानों के साथियों को जेल में बंद रखा। देश मे किसान के मन की बात सुनने की बजाय उन्हें कुर्सी के मन की बात सुनाई, केवल समझौता बात चीत की रस्म अदायगी की गई, फर्जी किसान संगठनों के जरिए आंदोलन को तोड़ने की कोशिश की, आंदोलनकारी किसानों को कभी दलाल, कभी आतंकवादी, कभी खालिस्तानी, कभी परजीवी तो कभी आंदोलन जीवी और कभी कोरोना स्प्रेडर कहा। यहां तक की मीडिया को डरा, धमका और लालच देकर किसान आंदोलन को बदनाम करने का अभियान तक चलाया गया, किसानों की आवाज उठाने वाले सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के खिलाफ बदले की कार्रवाई तक करवाई गई। राम लाल ठाकुर ने कहा कि आज सिर्फ किसान आंदोलन ही नहीं, मजदूर आंदोलन, विद्यार्थी-युवा और महिला आंदोलन, अल्पसंख्यक समाज और दलित, आदिवासी समाज के आंदोलन का भी दमन हो रहा है। इस अघोषित इमरजेंसी में आज भी अनेक सच्चे देशभक्त बिना किसी अपराध के जेलों में बंद हैं, विरोधियों का मुंह बंद रखने के लिए यूएपीए जैसे खतरनाक कानूनों का दुरुपयोग हो चुका है, मीडिया पर डर का पहरा है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठ चके है। बिना इमरजेंसी घोषित किए ही हर रोज लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।
ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था के मुखिया के रूप में किसकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी बनती है यह भी बताना होगा। इस अघोषित आपातकाल को रोकने के लिए जन जन को ही उठकर अलख जगानी होगी वरना अधिनायक वाली ताकतें हमें खामोश देखकर लोकतंत्र को खत्म करने से नहीं चूकेंगी और देश और लोकतंत्र का बंटाधार हो जाएगा।