Himachal Tonite

Go Beyond News

बेसहारा मनोरोगियों की पहचान में सरकार टेक्नालॉजी का सहारा ले: प्रो. श्रीवास्तव

1 min read
Featured Video Play Icon

शिमला हिमाचल प्रदेश राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने मांग की है कि शिमला के राज्य मनोरोग अस्पताल एवं अन्य अस्पतालों में भर्ती बेसहारा मनोरोगियों की पहचान पता करने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा लिया जाए। वहां अंगूठे के निशान से आधार कार्ड का ब्योरा जानने की मशीन लगाई जाए। देश के 99% वयस्कों का आधार कार्ड बना हुआ है। इसके अतिरिक्त एक पोर्टल भी बनाया जाए जो इन मनोरोगियों के परिवारों को ढूंढने में सहायक हो।

मुख्य सचिव राम सुभाग सिंह को भेजे एक पत्र में प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा मनोरोगियों का पता-ठिकाना जानना बहुत कठिन होता है। इसके अलावा सिर की चोट से कोमा में चले गए कई मरीज लावारिस हालत में अस्पताल लाए जाते हैं। यदि अस्पतालों में संबंधित उपकरण हो तो अंगूठे की छाप से उनका आधार कार्ड उपलब्ध हो सकता है। उन्होंने कहा कि वे पहले भी इस बारे में सरकार को पत्र लिख चुके हैं लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

उन्होंने बताया कि उमंग फाउंडेशन पिछले 5 वर्षों में प्रदेश के विभिन्न जिलों से 350 से अधिक बेसहारा मरीजों को समाज के सहयोग से रेस्क्यू करवा चुका है। मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के प्रावधानों के अंतर्गत उन्हें पुलिस के माध्यम से रेस्क्यू कराया जाता है। इन मनोरोगियों का पता ठिकाना मालूम होने पर उन्हें उनके परिवारों से मिलाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश के 99% वयस्कों का आधार कार्ड बना हुआ है। काफी संभावना है कि बेसहारा मनोरोगियों और कोमा में चले गए मरीजों की आधार कार्ड रीडर उपकरण से पहचान हो जाएगी।

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि 62 बिस्तरों की क्षमता वाले शिमला के राज्य मनोरोग अस्पताल में आर्टिकल 54 मरीज भर्ती हैं। इनमें से 70% अपना पता ठिकाना बता पाने में असमर्थ हैं। इसके अलावा मनोरोग अस्पताल से छुट्टी के बाद बेसहारा मरीजों को सोलन जिले के कुनिहार और मंडी जिले के लूनापानी स्थित हॉफवे होम में लंबे समय तक रहने के लिए भेज दिया जाता है। इस समय कुनिहार में 23 महिलाएं और मंडी में 25 पुरुष मनोरोगी भर्ती हैं। कई अन्य जिलों के अस्पतालों में भी मनोरोगी भर्ती रहते हैं।

उन्होंने कहा कि एक अलग पोर्टल बनाकर उस पर अज्ञात बेसहारा मरीजों का फोटो एवं विवरण डाला जाए। इससे भी उनकी पहचान पता करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने मुख्य सचिव से अपील की कि वे मानवाधिकारों से जुड़े इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर निजी दिलचस्पी लेकर संबंधित अधिकारियों को निर्देश दें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *