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तीन दषकों से चली आ रही मांग छोटा भगांल को चौहार घाटी में षामिल किया जाए

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जिला काँगड़ा के विकास खंड बैजनाथ के तहत छोटा भंगाल क्षेत्र की सात पंचायतों में स्वाड़, पोलिंग, लोआई,् मुल्थान, धरमाण, कोठी कोहड़ तथा बड़ाग्रां को द्रंग क्षेत्र की चौहारघाटी में षामिल करने की मांग कई दषकोें से चली आ रही है परन्तु किसी भी सरकार ने इस घाटी की जनता की भलाई के बारे में नहीं सोचा। उल्लेखनीय है कि छोटा भगांल की सात पंचायतों में 36 गांव आते हैं जिनमें 8500 के लगभग आवादी है। इस घाटी में जो भी नेता आए अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते गए और झुठे आष्वासन दे कर बोट बटोर कर चले गए।

अंग्रेजों के जमाने में 1920-30 के दषक में षानन पन बीजली घर बनने से बरोट विष्व के मानचीत्र के सामने पन बीजली व पर्यटन के क्षेत्र के रूप में आया। छोटा भंगाल की सातोेें पंचायतों का मुख्य केन्द्र बरोट ही था और आज भी है। इन सभी पंचायतों के लोगों का आने जाने के मुख्य पैदल रास्ते विलिंग-बीड़, बरोट-जोगिन्द्र नगर तथा झटींगरी-घटासनी होकर ही था। बच्चों की पढ़ाई, बीमारी का ईलाज, व्यापारिक केन्द्र, रिस्ते नातेे तथा अन्य सभी सुविधाएं बरोट में ही उपलब्ध थी। डाक सुविध में चार षाखा डाकघर सवाड़, दियोट, कोठी कोहड़ तथा बडाग्रां बरोट उपडाकघर से जुड़े हुए है।

षानन पन बीजली घर बने जाने के बाद पंजाब बीजली बोर्ड ने जोगिन्द्र नगर से बरोट तक अपने कर्मचारिायों के लिए पहाड़ पर चलने वाली रेल मार्ग ; ट्रªाली लाईनद्ध षुरू की जिसमें बरोट तथा छोटा भगांल की जनता को भी इस टाली में सफर करने की अनुमति दे दी गई परन्तु उसके लिए पन बीजली विभाग से पास बनाना अनिवार्य था। इस रेल मार्ग बन जाने से लोगों को आने-जाने में बहुत बडी राहत मिली। पहले छोटा भंगाल क्षेत्र अंग्रेजों के अधिन रहा। उसके बाद पंजाब राज्य बनने के बाद यह कांगड़ा जिला पंजाब राज्य में आ गया। सन् 1962-1964 में प्रताप सिंह कैरों पंजाब के मुख्यमन्त्री बने। उस समय कुल्लू जिला भी पंजाब राज्य में आता था। लोगों का कहना है कि प्रताप सिंह कैरों कुल्लू आना चाहते थे परन्तु वह अपने राज्य से ही कुल्लू आना चाहते थे। उस समय कुल्लू के लिए पंजाब राज्य में पड़ने वाले क्षेत्र से कोई भी सड़क मार्ग नहीं बना था अतः कैरों ने बीड़-बिलिंग होते हुए छोटा भगांल से कुल्लू के लिए सड़क बनाने की योजना बनाई।

सबसे पहले उन्होेंने तीन फुट चौड़ा रजू मार्ग बीड़-बिलिंग होते हुए छोटा भगांल लौहारड़ी तक का निर्माण करवाया जो आज भी दिखाई देता है। कुल्लू तक यह रजू मार्ग बन पाया है या नहीं परन्तु छोटा भगांल तक बन गया था। रजू मार्ग बन जाने के बाद प्रताप सिंह कैरों छोटा भगांल तक आए। छोटा भगांल की गरीब जनता व यहां की कठिन भौगोलिक स्थिति को देख कर बडे दुखी हुए। छोटा भगांल में स्वास्थय, बिजली, पानी, षिक्षा तथा अन्य कोई भी सुविधा न होने को देख यहां की जनता को हर सुविधा उपलब्ध करवाने का बचन दिया। षिक्षा के अभाव के कारण यहां की अनपढ़ जनता को देख कर उन्होने एक प्राथमिक पाठषाला खोलने की घोषणा की जिसमें 150 बच्चों को मुफ्त पढ़ाने, ठहरने तथा खाने की ब्यवस्था उपलब्ध थी।

यह पाठषाला आज भी है परन्तु सरकार की अनदेखी के कारण लगभग सन् 2000 से बंद पड़ी हुई है। प्रताप सिंह कैरों का सपना था कि छोटा भगांल से होकर कुल्लू तक सड़क मार्ग से जोड़ना मुख्य था तथा छोटा भगांल को पर्यटन के क्षेत्र में विकषित करना था परन्तु उनका यह सपना पुरा न हो सका क्योंकि उनकी मृत्यु 1965 में हो गई। पजांब मुख्यमन्त्री प्रताप सिंह कैरों के जाने के बाद कई सरकारें और नेता आए परन्तु विकास के नाम यह क्षेत्र हमेषा पिछड़ा ही रहा। बीड़-बिलिंग होते हुए राजगुंधा बड़ाग्रा सड़क मार्ग का निर्माण तीन दषक पहले से बनना षुरू हुआ था परन्तु यह आज तक नहीं बन पाया। आज भी छोटा भगांल के लोगों को बाया बरोट हो कर कोई भी सरकारी गैर सरकारी कार्य करवान के लिए बैजनाथ या जिला मुख्यालय कागंडा को साठ से एक सौ किलोमीटर बस द्वारा आना-जाना पड़ता है।

छोटा भगांल की सातों पंचायत के लोगों का मुख्य स्थल बरोट से ही इनका जनजीवन जुड़ा हुआ है। छोटा भंगाल घाटी के भाजपा नेता व लोआई पंचायत के पूर्व प्रधान हरीचंद ठाकुर ने बताया कि छोटाभंगाल क्षेत्र की कांग्रेस शासन काल से अनदेखी होती आरही है जो कि अब तक जारी ही है। छोटा भंगाल घाटी में मुल्थान तहसील में प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र कोठी कोहड़, लोहारडी व कोठी कोहड़ में जमा दो स्कूल, लोहारडी में पशु चिकित्सालय तथा हर पंचायत में वेटनरी डिस्पेंसरी का खोलना भाजपा सरकार की देन है। उन्होंने गत वर्ष चौहारघाटी के प्रवेश द्वार झटिंगरी में लोक निर्माण विभाग का कार्यालय खुलने की जानकारी देते हुए बताया कि छोटाभंगाल घाटी का यह कार्यालय लगभग पच्चास किलोमीटर दूर बीड़ से पड़ता है। इसलिए सरकार अगर छोटाभंगाल घाटी सात पंचायतों को चौहारघाटी में मिला दे तो सभी विभाग के कार्यालय दोनों घाटियों के केन्द्र स्थल बरोट या फिर मुल्थान में ही खुल सकते हैं।

पूर्व प्रधान हरी चंद ने बताया कि वर्ष 1983 में प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र बरोट का उदघाटन के लिए पहुंचे तत्कालीन मुख्य मंत्री वीरभद्र सिंह ने अपनी दूरगामी सोच रखते हुए इन दोनों क्षेत्रों को मर्ज़ करने का प्रस्ताव यहाँ के पंचायत प्रधानों के समक्ष रखा था जो आजतक संकीर्ण राजनीति के चलते सिरे नहीं चढ़ पाया है। मगर अब इस दुर्गम क्षेत्रों हर वर्ग के लोग इसके लिए पूरी तरह तैयार हो गए हैं क्योंकि वे अब समझ गए हैं कि इन क्षेत्रों को आपस में मिलाए बिना विकास संभव नहीं है।

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