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सीखने की प्रक्रिया के प्रति विद्यार्थियों में रोचक वातावरण तैयार करने में रंगमंच से जुड़ी गतिविधियां महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती

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शिमला, 23 अप्रैलः

सीखने की प्रक्रिया के प्रति विद्यार्थियों में रोचक वातावरण तैयार करने में रंगमंच से जुड़ी गतिविधियां महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। हिमालयन डिजिटल मीडिया द्वारा आयोजित साहित्य कला संवाद कार्यक्रम के अंतर्गत शिक्षा में रंगमंच की भूमिका विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी एवं अकादमी पुरस्कार से सम्मानित संजय सूद ने यह विचार व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि भाषा सीखने तथा मातृ भाषा से अलग अन्य भाषाओं को जानने एवं विभिन्न वातावरण तथा समय के अनुकूल विद्यार्थियों में चेतना जागृत करने के उद्देश्य से नाटक निष्ठ अभ्यास व खेलों की भूमिका भी शिक्षा में महत्वपूर्ण हो सकती है। व्यक्तित्व के विकास के लिए रंगमंच के अतिरिक्त अन्य विभिन्न कलाओं का समावेश भी विद्यालय शिक्षा में सहायक हो सकता है। विषय संबंधी ज्ञान के साथ-साथ सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक समझ पैदा करने के लिए नई शिक्षा नीति में नाट्य, नृत्य, संगीत व अन्य विधाओं को अधिमान देने से उपयोगिता बढ़ेगी।

उन्होंने कहा कि रंगमंच को यदि जीवित रखना है तो रंगमंच से आय अर्जित करने की सोच को छोड़ समर्पित भाव से रंगकर्म करना होगा। दर्शकों के बड़े वर्ग को रंगमंच की ओर आकर्षित करने के लिए हमें बेहतर प्रस्तुतियों का प्रदर्शन करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि शिमला या प्रदेश के किसी भी भाग में कहानी, कविता, नृत्य, संगीत और नाट्य कलाओं के अपने-अपने दर्शक हैं किंतु यदि यह सभी परस्पर कार्यक्रमों मंे शामिल होंगे तो किसी भी कार्यक्रम में दर्शकों की कमी नहीं खलेगी।

उन्होंने चर्चा के दौरान इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के उभरने से रंगमंच की हानि के संबंध में पूछे गए प्रश्न के प्रति विचार व्यक्त करते हुए बताया कि यह दोनों विधाएं अलग है। रंगमंच जीवंत विधा है, जिसकी किसी भी माध्यम के उभरने से हानि संभव नहीं है। उन्होंने बाल रंगमंच की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि रंगमंच की निरंतरता को बनाए रखने के लिए बच्चों मंे रंगमंच को करना तथा उन्हें इस ओर आकर्षित करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लोक नाट्य को संरक्षित करने व इसके प्रचलन को बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनके निरंतर प्रदर्शन करने आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि नाटक चाहे हिन्दी रंगमंच हो अथवा लोक नाट्य परम्परा इसके संवर्धन और संरक्षण के लिए सरकारी सरोकार के साथ-साथ सामाजिक दायित्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। नुक्कड़-नाटकों के प्रचलन को प्रभावी बनाने के लिए रंग टोलियों को विभिन्न सामाजिक तथा समसामयिक विषयों व जागरूकता प्रदान करने वाले बिंदुओं को लेकर अपने स्तर पर नाटक करने चाहिए, जिसमें बाद में सरकारी व अन्य संस्थागत सहयोग भी अवश्य मिलेगा।

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सचिव डॉ. कर्म सिंह ने भी चर्चा के दौरान रंगकर्म व रंगमंच से जुड़ी अन्य विधाओं के प्रति अकादमी का दृष्टिकोण तथा इस संदर्भ में लिए जा रहे निर्णयों व किए जा रहे कार्यों के प्रति विस्तार से अपनी बात कही।

संवाद कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली की स्नात्तक संगीत नाटक अकादमी से बिस्समिल्ला खां युवा पुरस्कार तथा साहित्य कला परिषद नई दिल्ली से युवा निर्देशक पुरस्कार एवं नट सम्राट संस्था नई दिल्ली से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त दक्षा शर्मा द्वारा किया गया। उन्होंने परस्पर संवाद कार्यक्रम में हिमाचल में रंगमंच की दशा, दिशा और भविष्य के संबंध में अत्यंत प्रभावी रूप से प्रश्न कर संवाद कायम किया, जिसे दर्शकों ने रोचक रूप से सम्मिलित हो अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की।

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